कानों में घुले अल्फ़ाज़ के रस-बही उर्दू-हिन्दी की बयार।
बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी की 557 वीं कड़ी में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में उर्दू-हिन्दी के रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक रचना सुना कर दाद लूटी।
अध्यक्षता करते हुए डॉ जगदीशदान बारहठ ने त्याग की महत्ता बयान करती हुई रचना सुनाई-
गैरों की खातिर बिकता रहा मैं बाजार में,
हाथ मेरे खाली रहे लुटता रहा मैं खैरात में।
वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने वर्तमान दौर पर चोट करती हुई ग़ज़ल पेश की-
यूं तो हासिल है हर इक खुशी शहर में,
फ़िर भी लगती है क्यूँ कुछ कमी शहर में।
राजस्थान उर्दू अकादमी के सदस्य असद अली असद ने अपनी ग़ज़ल में झूठों पर व्यंग्य बाण चलाये-
सच से शर्मिंदा क्यूँ ना होता झूट,
सच हमारा है और तुम्हारा झूट।
इम्दादुल्लाह बासित ने ख्यालात बदलने की बात कही-
जब तलक अपने ख्यालात नहीं बदलेंगे,
दोस्तो ! मुल्क के हालात नहीं बदलेंगे।
जुगलकिशोर पुरोहित ने बेटियों की महत्ता बयान की-
घर आंगन उपवन की शोभा बेटियाँ,
कन्या रुप मे सदा है आभा बेटियाँ।
संचालन असद अली असद ने किया।