गोधों का अलमस्त शहर बीकानेर.
जी हां, मेरा शहर बडा ही अलमस्त है। यहां पाटों पर बैठे बुजुर्गों द्वारा दुनिया जहान की तथ्य परक बातें, बातों-बातों में सामने आ जाती है। उन बातों पर विचार मंथन होता है और वह आसानी से कैसे हल हों वे तथ्य भी सामने आते हैं। हमारे शहर में गायों से ज्यादा गोधे हैं जो कभी भी किसी समय किसी को भी चोटिल कर सकते हैं। इन गोधों का नाम भी इनकी क्वालिटी के अनुसार रखा होता है-जैसे काळियो, भुरीयो, लालियो, छैलछबीलो, रंग रंगीलो, आंखराखणियो, आंख काढणियो, भचीड उपाडणियो, फड बाजार रो गोधो, सब्जी मंडी रो गोधो, आटाचक्की रो गोधो आदि। नाम के अनुसार इनका काम भी वैसा ही होता है जैसे फड बाजार, सब्जी मंडी और आटा चक्की का गोधा, इसे आप कितना ही मार लें मगर इसने जिस चीज में मुंह डाल लिया तो उससे अपना मुंह पूरा भर कर ही वहां से हटेगा। बगैर खाए वहां से नहीं हटेगा चाहे आप कितना ही उसे मार लें। यहां के लोग धर्मभीरु होने के कारण गायों के साथ गोधों को भी पालते थे और गोधों को हार-जीत करके लडवाते भी थे। रजवाडों के समय में धनी सेठों द्वारा गोधों की टक्कर (लडाई) करवाकर अपना शौक पूरा किया जाता था। जीतने वाले गोधे को मालिक द्वारा खूब आव-भगत के साथ गुड, गंवार एवं देशी घी खिला-पिलाकर उसकी मान मनोवल की जाती थी। गोधे भी इतने आज्ञाकारी होते थे कि उन्हें जब दो दिन पहले विशेष खुराक दी जाने लगती तो वे समझ जाते थे कि अब टक्कर होगी और उस टक्कर में मुझे जीतकर मेरे मालिक की नाक रखनी है। तय दिन जब मुकाबला होता था तो पूरा इलाका इकट्ठा हो जाता इन गोधों की टक्कर देखने। कई बार तो यह हालात बन जाते थे कि घण्टों लडने के बाद भी नतीजा नहीं निकलता। ये आमने-सामने डटे रहते। जब इन्हें जबरन छुडाया जाता तो एक दुसरे पर आंख रखते हुए कभी भी आमने-सामने हो जाते थे फिर छुडाने से भी नहीं छुटते। बीकानेर में जब राजनैतिक आम सभाएं हुआ करती तो एक दुसरे की सभा में व्यवधान डालने हेतु गोधों को भगाया जाता जिससे एक बार सभा उख़ड जाती। पूरी तरह नहीं उखडती तो इन्हें बार-बार भगाया जाता और विरोधी सफल हो जाते उस सभा को उखाडने में। क्योंकि गोधे बडे हस्ट-पुस्ट भारी-भरकम हुआ करते थे। ये जब भीड में घुसते तो हाहाकार, भाग-दौड मच जाती। जबरदस्त हुटिंग के साथ आवाजें निकलती गोधो-गोधो, आयग्यो-आयग्यो की आवाजों से पंडाल गूंज उठता। कुछ लोग गोधों को जोश दिलाते ओ-ओ ढुर्र, ओ-ओ ढुर्र बोलते पार्टी लोबिंग के हिसाब से कुछ बोलते-ओ गोकळजीरो मारणो गोधो आयग्यो। कुछ बोलते व्यास जी रो गोधो मारणो कोनी। उस समय को याद करते हुए नमन करना चाहता हूँ बीकानेर के चतुर राजनीतिज्ञों को जब चुनाव के समय एक दुसरे की सभाओं को नेस्तनाबुत करने हेतु अवांछित तत्वों का सहारा लेकर गोधों को सभा स्थल में घुसेडकर सभा को छिन्न-भिन्न करने का जतन करते थे। यहां के सुधि राज नेताओं ने इसका तोड भीढूंढ लिया। तगडे साहित्यकार कवि को उस वक्त मंच दे देते और वे कवि महोदय अपनी ओजस्वी वाणी में गीत, गजल या कविता सुनाने लगते तब सभी श्रोता वापस अपने यथा स्थान पहुंच कर सभा को व्यवस्थित कर लेते। यहां की राजनीति में गोधों का विशेष महत्व रहा है| अत: गोधा आज भी बीकानेर की संस्कृति का प्रतीक है। इसे बीच बाजार में ट्रेफिक गुमटी पर चढे हुए, बीच बाजार में धडल्ले से बैठे हुए, आम भीड भाड वाली जगह खुद को स्थापित किए देख सकते हैं। आज भी बीकानेर में गोधा संस्कृति जीवित है। जीवित रहेगी, क्यों नहीं? आखिर साहित्य का और गोधों का राजनैतिक वर्चस्व रहा है, बीकानेर के इतिहास में। जब जब राजनीति में गोधों ने आतंक फैलाया तब-तब बीकानेर का साहित्यकारों ने मंचों पर आकर अपनी रचनाओं की ताकत से उन गोधों को परास्त कर प्रेम और भाईचारे की जाजम जमाई थी।
शिव-निवास, बर्तन बाजार, बीकानेर मोबाइल-9314754724
2022-09-29 06:15:41