शेर-ओ-सुख़न की ख़ुशबू से महकी अदब की फ़ज़ा।
बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब के साप्ताहिक अदबी कार्यक्रम की 556 वीं कड़ी के तहत रविवार को होटल मरीधर हेरिटेज में मासिक तरही मुशायरा-5 का आयोजन रखा गया, जिसका मिसरा ए तरह था *होता नहीं जहाँ में ख़ुदा का दिया अबस*। कार्यक्रम में शहर के शाइरों ने तरही कलाम सुना कर दाद लूटी।
सेवानिवृत्त एडीआरएम निर्मल कुमार शर्मा ने मुशायरे की अध्यक्षता करते हुए वतन के काम आने की बात कही-
गर काम मुल्क के नहीं आया तो सुन निकुश,
फ़िर बोझ तू ज़मीं पे यहां बन रहा अबस।
वरिष्ठ शाइर जाकर अदीब ने राह के दीपक का महत्व बयान कर वाह वाही लूटी-
कितने ही काफिलों को दिखायेगा रास्ता,
रौशन नहीं है राह में कोई दिया अबस।
आयोजक डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने दिल में चिराग़े इश्क़ जलाने का संदेश दिया-
दिल मे चिराग़े इश्क़ जलाते तो बात थी,
रौशन किया है राह में तुमने दिया अबस।
असद अली असद ने प्यासों की प्यास पर शेर सुनाए-
तिशना लबों की हो ना अगर रफअ तिश्नगी,
दरिया तेरी रवानी का है सिलसिला अबस।
इम्दादुल्लाह बासित ने दुनिया की चाहतों में हुआ तो फ़ना अबस, अब्दुल जब्बार जज़्बी ने चलने लगी है आज ये कैसी हवा अबस, क़ासिम बीकानेरी ने हर क़ौल उसका झूटा है अहदे वफ़ा अबस, रहमान बादशाह तन्हा ने बे वजह आज क्यूँ मिली उसको सज़ा अबस और हनुवंत गौड़ ने तू भी ये भूल करके यहाँ बन गया अबस ग़ज़लें सुना कर मुशायरे में नए नए रंग भरे। संचालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।