अदब की ज़िया से मुनव्वर हुई सुख़नवरों की महफ़िल।
बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी की 555 वीं कड़ी में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में हिंदी-उर्दू के रचनाकारों ने अपना कलाम सुना कर दाद लूटी।
अध्यक्षता करते हुए शारदा भारद्वाज ने तरन्नुम से कलाम पेश कर समां बांधा-
मेरे दिल बता, तुझे है पता,ये कहाँ के नक़्शो-निगार है,
जो धुंवा उठा वो ख़ाक है,या फ़लक का कोई ग़ुबार है।
रायपुर प्रवासी साहित्यप्रेमी वीरेंद्र कोचर के मुख्य आथित्य में आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने सर रदीफ़ से ग़ज़ल सुना कर वाह वाही लूटी-
मुहब्बत की मंज़िल थी दुश्वार कितनी,
मगर उसने ये मारका कर लिया सर।
आयोजक डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने छोटी बहर में ग़ज़ल सुना कर सराहना प्राप्त की-
मुहब्बत है अगर उस जाने-जाँ से,
अलल-ऐलान कह दो ये जहाँ से।
इम्दादुल्लाह बासित ने मायूसियों की शाम मेरे रास्ते से हट, रहमान बादशाह तन्हा ने वो मुद्दतों से मनाने के बाद आये हैं और इस्हाक़ ग़ौरी शफ़क़ ने मुनव्वर दिल है इश्के-जविदां से सुना काव्य गोष्ठी में नए नए रंग भरे। संचालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।