दौरे बुरहानी-दावत का स्वर्णिम युग (1385-1435)



भारत में दाऊदी बोहरा समाज का गौरवशाली और निर्विवाद स्थान है। लगभग 500 वर्ष हुए यमन से भारत आए फातेमी दावत के प्रचारको ने विशुद्ध रुप से शांति और विकास प्रिय इस शिया संप्रदाय की बुनियाद तत्कालीन बंदरगाह खंबात गुजरात में रखी। उपदेशों और शालीनता से प्रभावित होकर गुजरात के व्यापारी समाज से संबद्ध विभिन्न धर्मालुओ ने दाऊदी बोहरा समाज से खुद को जोड़ा। यमन से गुजरात आकर अपना प्रशासनिक मुख्यालय भारत में बनाने वाले धर्मगुरू सैयदना दाऊद बिन अजब शाह थे, इसमे प्रारंभ में जुड़ने वाले गुजरात के बोहरा यानि व्यापारी वर्ग के लोग थे, इसलिए ये संप्रदाय शिया दाऊदी बोहरा समाज के नाम से जाना जाने लगा।  भारत में अहमदाबाद, सूरत, उज्जैन, जामनगर आदि स्थानो से होता हुआ अब मुख्यालय स्थायी रूप से मुंबई में स्थापित हैं।
 
सौम्य सरल सहयोगी प्रवृत्ति शिया दाऊदी बोहरा समाज का नैसर्गिक गुण है। इसी विशेषता ने समाज को कट्टर और उग्र स्वरूप से अब तक बचाये रखा हैं। यहीं कारण है कि दाऊदी बोहरा समाज कतिपय कट्टर मुगल बादशाहों की आंखो की किरकिरी रहा, जिसका खामियाजा समाज को भुगतना पड़ा। बोहरा समाज ने अपना देश अपनी माटी का सिद्धांत नहीं छोड़ा। राष्ट्रवाद यद्यपि शुरू से ही समाज की बुनियाद रहा, परंतु सर्वाधिक जुड़ाव का सिलसिला 51 वें दाईउल मुतलक मुकद्दस डाक्टर ताहेर सैफुद्दीन से प्रारंभ हुआ। और 52वें दाईउल मुतलक मुकद्दस डाक्टर सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब के ज़माने मे ये सर्वोच्च पर पहुंच गया। बुरहानुद्दीन मौला का कार्यकाल लगभग 50 वर्ष तक रहा। इन 50 वर्षों में बोहरा समाज ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाई।  बुरहानुद्दीन मौला का कार्यकाल दावत के इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जा सकता है।
 
मुकद्दस सैयदना ताहेर सैफुद्दीन साहब दूर दृष्टि वाले धर्मगुरू हीं नहीँ थे अपितु एक दार्शनिक और समाज शास्त्री थे। उनके सानिध्य में  मुकद्दस सैयदना मोहमद बुरहानुद्दीन साहब ने जो शिक्षा पाई, उसे बख़ूबी बुरहानुद्दीन मौला ने अमली जामा पहनाया। उनके व्यक्तित्व की ऊंचाई का मूल्याकंन एपीजे अब्दुल कलाम के इस वाक्य से किया जा सकता है कि सैयदना मोहमद बुरहानुद्दीन साहब के बारे में कोई संदेश देना सूरज को दिया दिखाना है। ये बात उन्होंने तब कही थी कि जब मैं बुरहानुद्दीन मौला के 100वें जन्म दिन पर प्रकाशित होने वाले टाइम्स आफ इंडिया के विशेषताओं के लिए संदेश का अनुरोध लेकर उनके पास राष्ट्रपति भवन पहुंचा था। बाद मे लगभग एक महीने बाद वो स्वयं मुंबई में बुरहानुद्दीन मौला के दरबार में हाज़िर हो गये थे।
 
 
राष्ट्रीयता, समाज और प्रकृति बुरहानुद्दीन मोला की कार्यपद्धति और सिद्धांतों की प्राथमिक विशेषता थी और शिक्षा बुनियादी आवश्यकता। उनके कार्यकाल में दाऊदी बोहरा समाज ने शत-प्रतिशत साक्षरता का टेग हासिल किया, आज भी शिक्षा के हर क्षेत्र में बोहरा भाई बहनो की घुसपैठ है। धरती के विभिन्न विषयों से लेकर अन्तरिक्ष तक कोई भी ऐसा विषय नही है जहाँ बोहरा समाज के सदस्यों की पकड़ नहीँ हैं। स्नातक होना बोहरा भाई बहनो की आवश्यक योग्यता बन गई हैं। विभिन्न देशों की रक्षा व्यवस्था में भी बोहरा समाज के सदस्यों का उल्लेखनीय योगदान हैं। हाल ही में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में भारत मे ही मेजर मुस्तफा ज़कियुद्दीन की शहादत हुई हैं। एपीजे अब्दुल कलाम के एडीजे कमांडर जुल्फिकार अली एवं  निमच सीआरपीएफ के कमांडर हातिम अली बोहरा थे। मेरे स्वयं के भतीजी दामाद ख़िज़र जाना इंडियन एयर फोर्स में विंग कमांडर है।
 
बुरहानुद्दीन मौला के ज़माने में दाऊदी बोहरा का सर्वागीण विकास हूआ। दीन के क्षेत्र में उनकी रूचि बोहरा भाई बहनो को कट्टर की जगह सहज और सर्वव्यापी रहीं। राष्ट्रीयता जिसका प्रमुख तत्व रहीं; जहाँ रहो उस ज़मीन और वतन के लिये ईमानदार रहो: इस उदघोष को बुरहानुद्दीन मौला ने हीँ लोकप्रिय बनाकर बोहरा समाज को सर्वोच्च सम्मान का अधिकारी बनाया। इस सिद्धान्त की छत्र-छाया में दीन की जड़े मजबूत की। इस्लाम के सिद्धांतों को सहज भाव से बोहरा भाई बहन सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यो के साथ अपने जीवन में उतारते है। बोहरा समाज के सदस्यों मे कुरान क॔ठस्थ करने का सिलसिला बुरहानुद्दीन मौला के ज़माने की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उनसे दीक्षित और शिक्षित बोहरा समाज के परिवार में कम से कम एक सदस्य हाफीज़े कुरान हो इस योजना पर सफलतापूर्वक काम कर रहा है। जहाँ तक राष्ट्रीयता का प्रश्न है। बोहरा समाज राष्ट्रीय और सामाजिक कार्यक्रमों मे राष्ट्र को सर्वोच्च स्थान देने में पीछे नहीँ हटता।
 
निर्माण मानवीय जीवन की प्राथमिकता है। शैक्षणिक विकास इसकी पहली जरुरत है, ताहेर सैफुद्दीन मौला, बुरहानुद्दीन मौला और अब मुफद्दल मौला की त्रिवेणी दावत के शैक्षणिक विकास में मील का पत्थर है, समाज के सर्वागीण विकास के लिये ये त्रिवेणी हमेशा यादगार रहेगी। इसका सबसे बड़ा सबूत यहीं है कि तीनों ही अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के चांसलर रहै है। सूरत मे बोहरा समाज का शैक्षणिक केंद्र अल जामिअतुस सैफिया का संपूर्ण विकास, कराची और नैरोबी में इसकी शाखाओं की स्थापना बुरहानुद्दीन मौला के ज़माने की विशेष उपलब्धि हैं। विश्व के लगभग सभी देशो मे जहाँ भी बुरहानुद्दीन मौला जाते थे, उन्हें विशेष राजकीय अतिथि का दर्जा हांसिल होता था, यहीं सिलसिला वर्तमान सैयदना मुफद्दल मौला के ज़माने में भी जारी है। ये उपलब्धि बुरहानुद्दीन मौला के कूटनीतिक संबंधों की सफलता है।
 
विलुप्त होती सोन चिड़ैया के संरक्षण से लेकर प्रकृति के संरक्षण के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम तक और निराश्रित विद्वजनों के आश्रय में रूचि बुरहानुद्दीन मौला की संवेदनशीलता का प्रतीक है। यहीं वजह हैं कि तेरापंथी जैन समाज के संत मुनि महाप्रज्ञ जी महाराज उनके प्रशंसकों में प्रमुख थे। बोहरा समाज के भाई बहनो को वे मानवीय और संवेदनशील बिलकुल अपनी तरह देखना चाहते थे। बोहरा भाई बहनो मे जो सामंजस्य और एक रूपता उनकी ही सूझबूझ का परिणाम है। और ऐसे अनेक तथ्य है जिसके विश्लेषण और अध्ययन से हमें ये जानने को मिलता है कि बुरहानुद्दीन मौला का युग फातेमी दावत का स्वर्णिम युग हैं। यहीं वजह हैं कि बोहरा समाज उनके एहसानों से उॠण नहीँ हो सकता, और उनकी शान में गाता है: *ए मोला तेरे नज़रे करम ने, कहां से कहाँ हम को पहुंचा दिया।* हमें गर्व है बुरहानुद्दीन मौला की परंपराओं का सिलसिला मुफद्दल मौला के दौर में भी बदस्तूर जारी हैं । इसलिए हम एक स्वर में दोहराते है: मौला मौला मुफद्दल मौला।
 
पण्डित मुस्तफ़ा आरिफ़
लेखक प्रसिद्ध चिन्तक, विचारक एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

2022-11-19 15:41:54