राजस्थानी भाषा की मान्यता से मिलेगा मानगढ को मान।



गुजरात चुनाव जीतने के लिए राजस्थानी एकमात्र सहारा है। राजस्थानी को केवल ढाल बनाकर चुनाव की रणनीति बनाइये परंतु  उसको भी तो अपना हक मिले राजस्थानी को मान्यता मिले। प्रधानमंत्री जी मानगढ़ को मान देने के लिए आपका और भारत सरकार का आभार प्रकट किया जाना चाहिए।  परंतु यह देखने की जरूरत है कि मानगढ़ के आदिवासियों ने गोविंद गुरु के नेतृत्व में जिस भाषा में यह लड़ाई लड़ी थी उस राजस्थानी  भाषा को भी मान दीजिए। यह बात भी सही है कि इन दिनों गुजरात में चुनाव होने हैं, गुजरात कि अधिकतर विधानसभा की सीटें राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र के लोगों से प्रभावित होती है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में आदिवासियों को संदेश देते है जिससे आने वाले चुनाव में उनकी पार्टी को वोट मिले। गुजरात चुनाव में राजस्थान वोट छापने की मशीन बन चुका है, इन दिनो गुजरात चुनाव प्रचार अभियान की कमान राजस्थान के नेताओ के हाथो में है।

 आप देख रहे हैं की राजस्थान के दो बड़े नेता पूरे देश को  चलाने वाली पंचायत के प्रमुख हैं यह इसलिए कि हमारे देश के प्रधानमंत्री को यह समझ आ गई है कि राजस्थान के लोग कुछ मागते नहीं हैं और ना भी मांगे तो उन्हें दिया जाना कोई जरूरी भी नहीं है लोकसभा के अध्यक्ष राजस्थान से आते हैं तो राज्यसभा के सभापति भी राजस्थान से आते हैं, चूंकि राजस्थान की जनता को अब उम्मीद बंधी है कि हमारी भाषा को मान्यता मिलेंगी।  इन दोनों के माध्यम से पूरे देश की संसद संचालित होती है, लेकिन बड़े दुर्भाग्य का विषय है इन दोनो की भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं है। लोकसभा और राज्यसभा चलाने वाले प्रमुखों की भाषा को आज भी मान्यता देने का विचार तो दूर सोच भी नहीं है। गुजरात चुनाव में दोनों पार्टियों के नेताओं की कमान राजस्थानियों के पास है राजस्थान के लोग ही गुजरात की पार लगा सकते हैं। राजस्थान के आदिवासी गुजरात में चुनाव जीता सकते हैं, गुरु गोविंद को याद कर सकते हैं लेकिन गुरु गोविंद ने जिस राजस्थानी भाषा में आजादी की लड़ाई लड़ी उस भाषा को भी मान- सम्मान मिलना चाहिए। वोट हासिल करने से पूर्व राजस्थानी भाषा को केन्द्र सरकार मान्यता देने में पीछे क्यों हटती है। राजस्थान- राजस्थानी सदैव सहयोगात्मक रहे है और पूरी दुनिया में नेतृत्व करता रहा है परंतु उसकी भाषा को मान्यता देने में इतना परहेज क्यों ? राजस्थानी भाषा को मान्यता देने से ना तो गुजरात का मान कम होगा ना लोकसभा अथवा राज्यसभा का मान कम होगा, पूरी दुनिया में एक सकारात्मक संदेश जाएगा। कोई ऐसा देश नहीं है जहां राजस्थानी बोली नहीं जाती हो दुनिया का कोई  ऐसा देश नहीं है जहां पर मारवाड़ी ना रहता हो और जहां राजस्थानी है वहां राजस्थानी बोली जाती है ऐसी भाषा को मान्यता ना देना केंद्र सरकार की कौन सी सोची-समझी चाल है यह सोच-विचार का विषय बनना चाहिए। राजस्थान विधान सभा ने 2003 में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर भारत सरकार को भेजा था अच्छा होता कि  मानगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थानी भाषा को मान- सम्मान अर्पित करते । राजस्थान यह उम्मीद करता हैं कि लोकसभा और राज्यसभा के सभापति दोनों मिलकर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को उनको बनाने का धन्यवाद दें और यह कहे कि हमको बनाने की यात्रा तभी पूरी होगी जब हमारी भाषा को मान मिलेगा, सम्मान मिलेगा और राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल किया जाएगा।  दोनों नेता परहेज क्यों कर रहे हैं प्रदेश के 35 सांसदों को साथ लेकर राजस्थानी भाषा की मान्यता की  मांग कब करेंगे।

  गुजरात का चुनाव जीतने के लिए राजस्थानी नेताओ को आगे करना उनकी अगुवाई में चुनाव लड़ना और सरकार बनाना। प्रधानमंत्री जी खुद जब गुजरात जाते हैं तो गुजराती में भाषण देते हैं बात करते हैं। क्या उन्होंने कभी सोचा की राजस्थान के दो बड़े नेता लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति जब अपने प्रदेश में जाए  तो वे राजस्थानी किस मुंह से बोलेंगे उनकी भाषा को भी मान मिलना चाहिए। गोविंद गुरु को श्रद्धांजलि देने के लिए स्मारक बनाया जाना चाहिए लेकिन जिस भाषा में गोविंद गुरु ने गीत लिखे उनके साथ आदिवासियों ने लड़ाई लड़ी उनकी भाषा राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए हमारे सांसद प्रधानमंत्री जी से पुरजोर शब्दों में मांग करें। प्रधान मंत्रीजी  दस करोड़ राजस्थानियों की वर्षों पुरानी मांग संसद के सत्र में पूरी की जाए। 

राजेन्द्र जोशी

कवि-कथाकार 

9829032181

 


2022-11-12 13:30:47