सत्ता-शक्ति और अधिकारों के भँवर में फँसा बीकानेर का विकास।




बीकानेर वासियों ने जिन नेताओं को शहर में सर्वांगीण विकास कार्य करने की कमान उनके हाथों में सौंपी थी और एक फकत चाह की थी शहर में खुशहाली की शायद वे बीकानेर की आवाम की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं। शहर में विकास की योजनाओं को बनाने वाले और फिर उन योजनाओं को तय समय सीमा में परवान चढ़ाने वाले प्रशासनिक अधिकारी भी अपनी ड्यूटी निभाने में नाकाम ही साबित होते नजर आ रहे हैं। सत्ता और प्रशासन की आपसी टकराहट का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है बीकानेर की शान्ति पसन्द बेचारी जनता को। जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के विशालकाय अहम का कद लगातार विशाल होता जा रहा है जिसके कारण उनको शहर में व्याप्त घोर समस्याएँ दिखाई ही नहीं दे रही हैं और अगर दिखाई दे भी रहीं हैं जो उनकी नजर में समस्या और उसका समाधान गौण है, विकास के कार्य गौण है, शहरवासियों की तकलीफें गौण है। सड़कें टूटी हुई हैं तो क्या? सड़कों पर बड़े-बड़े खड्डे दिन-रात अपना आकार बढ़ाते जा रहे हैं तो क्या? नियमित सफाई नहीं होती तो क्या? सीवरेज जाम पड़ीं हैं तो हमें क्या? ट्रैफिक व्यवस्था चौपट पड़ी है तो क्या? नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के अहम के पाटों के बीच पीस का रह गया है बीकानेर का तन्त्र। उसके ऊपर अमानक स्तर के कार्य कोढ़ में खाज साबित हो रहे हैं। यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है विकास की दौड़ में सदैव ही पीछे रहने वाला बीकानेर सदैव ही अपरिपक्व नेतृत्व, अदूरदर्शिता और अनियोजित नीतियाँ का शिकार रहा है। सत्ता-शक्ति और अधिकारों की लड़ाई के भंवर में फँस कर दम तोड़ रही हैं विकास की उम्मीदें।  

2022-11-04 23:31:20