नफरत-वैमनस्य का अंधेरा मिटाएं-प्यार-भाईचारे का उजियारा लाएं।
दीपावली पर दीप जला लिए। पटाखे चला लिए। आतिशबाजी से आसमान गुंजा दिया। मिठाइयां बांट दी, खा ली-खिला दी। दुकानों-मकानों पर सजावट कर ली। मां लक्ष्मी जी-श्री गणेश जी की पूजा- अर्चना कर ली। एक-दूसरे को बधाई और शुभकामनाएं भी दे दीं-ले लीं।हमने दीपावली मना ली। कहीं ऐसा नहीं लगता है कि महज हर साल रस्म अदायगी के लिए दीपावली मनाते हैं और मना रहे हैं। लेकिन कभी यह भी सोचा कि जिस तरह हम दीपावली पर दुकान-मकान की साफ-सफाई करते हैं, पर्दे, सोफा कवर आदि धोते-धुलवाते हैं और फिर लक्ष्मी जी को पाने की तमन्ना करते हैं। उसी तरह हम दीपावली पर अपने मन का मैल साफ क्यों नहीं करते। हम अमावस्या की काली-अंधियारी रात में दीयों व लड़ियों से रोशनी कर अंधियारे को छांटते हुए प्रकाश भरते हैं, किंतु मन में भरे आपसी बैर, वैमनस्य, घृणा, ऊंच-नीच, तिरस्कार, अपमान, जलन, ईर्ष्या, कुंठा रूपी अंधियारे को बिल्कुल भी नहीं छांटते हैं। हम होली-दीवाली गले तो मिलते हैं, लेकिन हाथ में खंजर लेकर। गले भी मिलते हैं और पीठ में छुरा भी घोंपते हैं। आइए, अंधकार पर उजाले के प्रतीक इस बड़े उत्सव पर हम अपने घरों पर दीप जलाने की तरह मन में प्यार, मोहब्बत व भाईचारे के दीप जलाएं, नफरत और वैमनस्य का अंधियारा मिटाएं। अगर हम ऐसा कर सकते हैं तो ही दीपावली की खुशियां मनाना हमारे लिए सार्थक होगा। वरना जमाने के साथ हम रस्म अदायगी तो कर ही रहे हैं। दिखावे के लिए एक-दूसरे को शुभकामनाएं दे रहे हैं।