पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब के साप्ताहिक अदबी कार्यक्रम के तहत मासिक तरही मुशायरा-3 का आयोजन।
बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब के साप्ताहिक अदबी कार्यक्रम की 547 वीं कड़ी के अंतर्गत रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में मासिक तरही मुशायरा-3 का आयोजन किया गया जिसका मिसरा ए तरह था-"उनके आते ही बदल जाती है घर की सूरत।"शहर के शाइरों ने उक्त मिसरे पर एक से बढ़ कर एक ग़ज़ल पेश की।
अध्यक्षता करते हुए मौलाना अब्दुल वाहिद अशरफी ने अपने शेर में जीवन दर्शन पेश किया-
अपने कांधों पे लिए फ़िरता हूँ मय्यत अपनी
सिलसिला सांस का है रख्ते-सफ़र की सूरत
मुख्य अतिथि वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने वर्तमान हालात की तस्वीर खींची-
अब तो हर बात पे हम लोग सहम जाते हैं
देख लेते हैं अंधेरे में भी डर की सूरत
आयोजक संस्था के डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने बहादुरशाह ज़फ़र को याद किया-
दिल भी दिल्ली का धड़कता तो धड़कता कैसे
उसने देखी ही नहीं शाहे-ज़फ़र की सूरत
उर्दू अकादमी सदस्य असद अली असद ने मौजूदा पत्रकारिता पर सवाल उठाए-
जाने क्या हो गया इस दौरे-सहाफत को "असद"
हादसा ले नहीं पाता है खबर की सूरत
निर्मल कुमार शर्मा के शेर भी खूब सराहे गए-
जिनका मक़सद है मुनाफे की सियासत करना
उनसे बदली है ना बदलेगी शहर की सूरत
इस अवसर पर इम्दादुल्लाह बासित ने "मिल के रहना है हमें शीरो-शकर की सूरत",साग़र सिद्दीकी ने "शामे-ग़म को भी मुयस्सर हो सहर की सूरत", अमित गोस्वामी ने "ग़म की आंधी ने झिझोड़ा जो शजर की सूरत", राजेन्द्र स्वर्णकार ने "ज्यूँ फकीरों की दुआओं के असर की सूरत", मुहम्मद इस्हाक़ ग़ौरी शफ़क़ ने "वरना लाखों लिए फिरते हैं बशर की सूरत",माजिद ग़ौरी माजिद ने "बन के मेहमान जब आते हैं घर पर मेरे" सुना कर वाह वाही लूटी। डॉ वली मुहम्मद, शारदा भारद्वाज, जुगलकिशोर पुरोहित और ज़ुल्क़रनैन ने भी कार्यक्रम में शिरकत की। संचालन डॉ ज़िया-उल-हसन क़ादरी ने किया।