फ़ादर्स डे पर शाइरों ने बिखेरी अल्फ़ाज़ की ख़ुश्बू।
बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में शाइर इम्दादुल्लाह बासित ने पितृ दिवस के अवसर पर उक्त पंक्तियां सुना कर मां-बाप का महत्व परिलक्षित किया।
*करते किस दर्जा हैं बच्चों से मुहब्बत मां बाप,
ख़ुद पे ले लेते हैं बच्चों की मुसीबत मां बाप*
डॉ जगदीशदान बारहठ के मुख्य आथित्य में आयोजित काव्य गोष्ठी में वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने बाबूजी रदीफ़ से ग़ज़ल पेश कर पिता को याद किया।
*है कम जो पेश करें जान का भी नज़राना,
है हम पे आपका इतना उधार बाबूजी*
है हम पे आपका इतना उधार बाबूजी*
आयोजक डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने पिता का स्मरण करते हुए उन्हें फरिश्ता बताया।
*मुझको कभी जो बाप का चेहरा दिखाई दे,
ऐसा लगे है जैसे फरिश्ता दिखाई दे*
ऐसा लगे है जैसे फरिश्ता दिखाई दे*
इस अवसर पर असद अली असद, डॉ कृष्ण लाल बिश्नोई, शकूर बिकानवी, धर्मेंद्र राठौड़ धनंजय, डी एल एड स्टूडेंट नरसीराम और महेश सिंह बडगुजर ने भी कलाम सुनाकर वाह-वाही लूटी। संचालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।