चीन को पीछे छोड़ कर भारत बना दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश...



 

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी 1.428 अरब हो जाएगी जो कि यूरोप (74.4 करोड़) या अमेरिकी महाद्वीप (1.04 अरब) से भी ज़्यादा है। 1960 और 1980 के बीच भारत की आबादी तेज़ी से बढ़ी और महज 70 साल में आबादी में एक अरब का इजाफा हुआ। अभी भी जनसंख्या बढ़ ही रही है, लेकिन उस दर से नहीं जैसा 40 साल पहले होता था। तो इसका मतलब है कि भविष्य में भारत की आबादी घटने लगेगी।  रिकॉर्ड समय में भारत के जनसंख्या विस्फ़ोट और आने वाले समय में क्या होने वाला है इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं।

 

1-रिकॉर्ड टाइम में एक अरब आबादी... 

भारत में 2011 के बाद से जनगणना नहीं हुई है इसलिए हम नहीं जानते कि 2023 में भारत की सटीक जनसंख्या क्या है। हालांकि पहले की जनगणनाओं से पता चलता है कि भारत की जनसंख्या में 1950 से 1980 के बीच तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई। 1951 में जनसंख्या 36.1 करोड़ थी जो 1981 में बढ़ कर 68.3 करोड़ हो गई इस बीच भारत की आबादी में 32.2 करोड़ का इजाफ़ा हुआ। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, बीते सत्तर सालों में भारत की आबादी में एक अरब की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। लेकिन बीते तीन दशकों में जनसंख्या वृद्धि में एकरूपता दिखी क्योंकि उसी दौरान जनसंख्या वृद्धि की रफ़्तार धीमी होनी शुरू हुई थी। 

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पापुलेशन साइंसेज के प्रोफ़ेसर डॉ. उदय शंकर मिश्रा के अनुसार, भारत की जनसंख्या वृद्धि धीमी हुई है लेकिन अभी भी इसका बड़ा होना जारी है। चीन की भी आबादी सालों से 1.4 अरब है, लेकिन इसकी आबादी घट रही है, जबकि भारत की आबादी बढ़ रही है। प्रो. उदय शंकर कहते हैं, जनसंख्या में मौजूदा वृद्धि को देखते हुए, हम कम से कम अगले चार दशक तक बढ़ते रहेंगे और उसके बाद जनसंख्या वृद्धि दर में ठहराव आएगा।

 

2-भारत की आबादी तेज़ी से बढ़ी लेकिन अब रफ़्तार धीमी पड़ रही है...

साल 1950 से 1990 के बीच भारत की जनसंख्या वृद्धि दर दो प्रतिशत से अधिक थी। जनसंख्या वृद्धि दर देश में मृत्युदर और जन्मदर के अंतर से निकाली जाती है साथ ही आबादी में कुल विस्थापन दर का भी ध्यान रखा जाता है।  प्रो. उदय शंकर के अनुसार, भारत में मृत्यु दर सालों से कम होती जा रही है. हालांकि जन्मदर में कमी, भारत की गिरती जनसंख्या वृद्धि दर का बड़ा कारक है। साल 2021 में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 0.68% तक गिर गई थी। अगर पड़ोसी देश पाकिस्तान से तुलना करें तो, 2017 में जनसंख्या वृद्धि दर 2% से ऊपर बनी हुई थी। इसका साफ़ मतलब है कि अब पहले अधिक लोग लंबी उम्र तक जी रहे हैं और कम बच्चे पैदा कर रहे हैं, जिससे वृद्धि दर का ग्राफ़ नीचे जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, अबसे 2050 तक आबादी में कुल वृद्धि सब सहारा अफ़्रीकी और कुछ एशियाई देशों समेत उन देशों में देखने को मिलेगी जहां प्रजनन दर अधिक है। जबकि भारत की प्रजनन दर पिछले दो दशकों से गिर रही है। 

 

3-गिरती प्रजनन दर...

नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, भारत के सभी धार्मिक समूहों में प्रजनन दर कम हो रही है। हिंदू भारत की आबादी का क़रीब 80% हिस्सा हैं और इस धार्मिक समूह में प्रजनन दर प्रति महिला 1.9 जन्म है। जबकि 1992 में ये प्रति महिला 3.3 जन्म थी. यानी 1992 से 2019 के बीच प्रति महिला 1.4 बच्चों की कमी आई। इसी तरह मुसलमानों में 1992 के बाद प्रजनन दर में तेज़ी से गिरावट दर्ज की गई। हाल के सालों में जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, मुस्लिम और हिंदु समूहों में प्रति व्यक्ति कम बच्चे पैदा हुए। लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आने वालों सालों में भारत की जनसंख्या में अचानक ही कमी आएगी। 

प्रो. उदय शंकर के मुताबिक़, हालांकि कम उम्र की महिलाओं में प्रजनन दर में गिरावट दिख रही है, लेकिन बड़ी उम्र की महिलाओं में अभी भी उच्च प्रजनन दर है, जोकि अगले 40 साल तक भारत की जनसंख्या वृद्धि को बनाए रखेगी। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अगर समय के साथ प्रजनन दर का लगातार गिरना जारी रहता है, जैसा कि पिछले दशकों में भी बना रहा, तो 2100 तक भारत की आबादी 1.5 अरब हो जाएगी। अगर पिछले दशकों की जनसंख्या वृद्धि पर नज़र डालें तो ये बहुत मामूली वृद्धि है। प्रो. उदय शंकर विभिन्न सामाजिक आर्थिक कारणों का भी ज़िक्र करते हैं जिनकी वजह से आबादी में वृद्धि की रफ़्तार धीमी हुई है, जैसे कि बच्चे पैदा न करने का विकल्प चुनना। मौजूदा समय में भारत की प्रजनन दर अमेरिका (1.6 बच्चे प्रति महिला) और चीन (1.2 बच्चे प्रति महिला) से बेहतर है लेकिन अपने ही 1932 (3.4 बच्चे प्रति महिला) और 1950 (5.9 बच्चे प्रति महिला) से काफ़ी कम है। 

 

4-युवा भारत... 

भारत एक युवा देश है और अगले 50 सालों तक ऐसा ही बना रहेगा। 25 साल से कम उम्र के लोग कुल आबादी का 40% हैं। हालांकि देश की आधी आबादी की उम्र 25 से 64 साल के बीच है, यानी आबादी की औसत उम्र 28 साल है। अमेरिका में आबादी की औसत उम्र 38 साल जबकि चीन की 39 साल है। भारत की बुज़ुर्ग होती आबादी (65 साल से ऊपर) बहुत कम है, कुल आबादी का महज 7% है। लेकिन अगर भारत की जनसंख्या वृद्धि दर इसी तरह गिरना जारी रही तो बुज़ुर्ग होती आबादी का भार बढ़ता जाएगा। 

 

5-नौजवान बना बुज़ुर्ग आबादी... 

अमेरिका, चीन और जापान की तरह भारत में बुज़ुर्ग आबादी में तेज़ वृद्धि की समस्या नहीं है। चीन में हर 10 लोगों में 1.4 लोगों की उम्र 65 साल से ज़्यादा है जबकि अमेरिका में ये 1.8 है। भारत में 2100 तक 65 साल से ऊपर की आबादी में 23% की वृद्धि का अनुमान है। प्रो. उदय शंकर के अनुसार, हर उम्र के समूह के घटकों को बारीक से देखने की ज़रूरत है। समय के साथ, कम उम्र के समूह के लोग बूढ़े होते जाएंगे। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि ये ग्रुप ओपरलैप करेंगे। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, मौजूदा दौर में भारत की 40% आबादी की उम्र 25 साल से नीचे है। जबकि 2078 तक ये गिर कर 23.9% हो जाएगी। अनुमान के मुताबिक, 2063 तक भारत की बुज़ुर्ग आबादी का प्रतिशत 20 के नीचे ही बना रहेगा और इसलिए अन्य देशों के मुकाबले भारत की आबादी फिर भी युवा ही रहेगी। 

 


2023-04-26 21:25:43