बासी कढ़ी में उबाल है या हांडी में खिचड़ी?




राजस्थान कांग्रेस में सत्ता की सियासत में आखिर क्या चल रहा है? जिस तरह से रोजाना पल-पल में समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं, उसे देखते हुए राजनीति के धुरंधर जानकार भी यह नहीं बता सकते हैं कि आखिर क्या चल रहा है और नतीजा क्या होगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक 92 विधायकों में से एक बड़ा खेमा विधायक दल से अलग बैठक कर पार्टी आलाकमान और ऑब्जर्वर को अंगूठा दिखाता है। नतीजतन, आलाकमान के आदेशानुसार एक लाइन का प्रस्ताव पास नहीं हो पाता है। गरमाई राजनीति को थामने की गरज से मुख्यमंत्री गहलोत दिल्ली में दस जनपथ जाकर माफी मांगते हैं। आलाकमान से मांगी गई माफी और अपने ही खेमे के विधायकों के रुख का जिक्र करते हुए गहलोत भावुक हो जाते हैं। सत्ता पाने का जुनून पाले सचिन पायलट को घेरते हैं। दो साल पहले हरियाणा के मानेसर में जाजम बिछाने का हवाला देते हुए पायलट और भाजपा को निशाने पर लेते हैं। दस जनपथ से लौटने के बाद हाथ से सत्ता छिन जाने का डर सताता है, तो गहलोत अपने खेमे के विधायकों को विधायक दल की बैठक में नहीं पहुंचने और अलग बैठक करने के लिए कोसते हैं। इधर, जब पायलट को सत्ता मिलती दिखाई नहीं देती है, तो गहलोत खेमे के मंत्रियों व विधायकों से मिलने उनके घर पहुंचने लगते हैं। दोनों खेमों की ओर से जुबानी जंग लड़ी जा रही है। रोजाना पल-पल में नए-नए राजनीतिक बयान दिए जा रहे हैं। कांग्रेस की राजनीति का "ना ओर नजर आता है, ना छोर"। गेंद कभी इस पाले से उस पाले में, तो कभी उस पाले से इस पाले में डाली जा रही है। पिछले कई दिनों से रोज सुबह से रात तक ना जाने कितनी बार सत्ता परिवर्तन की सियासी अफवाहें उड़ती हैं। दोनों खेमों के विधायकों व मंत्रियों की जुबानी जंग तीखे तेवर और दिलछेदी शब्द बाणों से चल रही है। कटुता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि फिलहाल दोनों खेमों में सुलह की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती हैं। इन सारे हालात को देखें, तो कभी-कभी यह आभास होता है कि जिस तरह दो साल पहले "बासी कढ़ी में उबाल" आया था, या तो उसी तरह का "उबाल" अब आया है या फिर "सियासी हांडी में खिचड़ी" पक रही है। यदि उबाल आया है, तो कुछ दिनों बाद ठंडा पड़ जाएगा। यदि खिचड़ी पक रही है, तो भी फिर पहले की तरह "मिल-बांट" कर सत्ता का "स्वाद" लेंगे। यानी हम दोनों "भाई-भाई" की दुहाई देते हुए मिलजुल कर सत्ता में भागीदारी निभाने का फार्मूला अपना सकते हैं। हां, भाजपा जरूर गिद्द की तरह नजरें लगाए बैठी है। यदि कांग्रेस ने बासी कढ़ी का उबाल नहीं थामा या फिर खिचड़ी की हांडी फूट गई, तो भाजपा तुरंत हरकत में आ सकती है। वैसे तो मौजूदा हालात देख कर यह कह पाना बहुत मुश्किल है कि गहलोत कुर्सी छोड़ेंगे या नहीं। पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी या नहीं। चाहे गहलोत मुख्यमंत्री बने रहें या पायलट बन जाएं, दोनों ही स्थिति-परिस्थितियों में दोनों खेमों के विधायक-मंत्री चुप बैठने वाले नहीं हैं। तो फिर आगे क्या होगा या हो सकता है, राजनीति के विश्लेषक कहे जाने वाले चतुर सुजान भी अभी कुछ भी नहीं बता सकते हैं। कयासों का दौर जैसा पहले चल रहा था, वैसा ही आगे भी चलेगा। परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास से पायलट की मुलाकात के अनेक सियासी मायने निकाले जा रहे हैं, तो मुख्यमंत्री गहलोत के बयानों के भी अलग मायने निकाले जाते हैं। बहरहाल, जब तक या तो बासी कढ़ी उबल कर छलक नहीं जाए या फिर खिचड़ी की हांडी फूट नहीं जाए, तब तक सियासी घटनाक्रम को देखते रहें। जब रणबांकुरे मैदान में उतरे हैं, तो कुछ-ना-कुछ नतीजा सामने आना ही है।

2022-10-06 23:19:49