शमशान में खोला स्कूल और लाइब्रेरी, लाइब्रेरी से पढ़कर कई बने अधिकारी।




ये हैं नोएडा के रहने वाले महेश सक्सेना. इन्होंने कभी शमशान घाट मे गरीब बच्चों के लिए स्कूल की शुरुआत की थी. ये आज नोएडा की इकलौती सबसे बड़ी लाइब्रेरी चलाते हैं. इस लाइब्रेरी में पढ़कर कई बच्चे बड़े अधिकारी बन गए हैं। अब महेश सक्सेना नोएडा में इलेक्ट्रिक अंतिम संस्कार शुरू करने वाले हैं।  नोएडा के सेक्टर-15 के रहने वाले महेश सक्सेना पेशे से बिजनेसमैन थे. उनके भाई की मौत ने उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव लाया कि वह समाज सेवक बन गए. अब वह नोएडा की सबसे बड़ी लाइब्रेरी चलाते हैं, जिसमें जाने के लिए एक छोटे से गेट से होकर गुजरना होगा।  मगर, अंदर पहुंचते ही ज्ञान का विशाल भंडार मिलेगा. यहां पहुंचते ही चारों तरफ किताबें ही किताबें दिखाई देने लगेंगी. जिस भी कमरे में आप पहुंचेंगे, वहां वहां किताबों का भंडार मिलेगा. आपको कहानी पढ़नी हो या किसी कोर्स की तैयारी करनी हो, इस जगह पर हर चीज से जुड़ी किताब मिल जाएगी. इस लाइब्रेरी से पढ़कर कई बच्चे अधिकारी तक बन चुके हैं.  मरघट में स्कूल और फ्री में खाना--- नोएडा लोक मंच एक ऐसी संस्था है, जो समाज में गरीब बच्चों की पढ़ाई और गरीबों के इलाज के लिए काम कर रही है. इस संस्था की देख-रेख महेश सक्सेना करते हैं.  महेश सक्सेना अंतिम निवास से लोगों को सीधे जुड़ने के लिए सबसे पहले वहां पर एक स्कूल की शुरूआत की. मरघट में स्कूल का होना बेहद ही अनोखा है. काफी दिन तक उस स्कूल में गरीब मजदूरों के बच्चे आ कर पढ़ाई करते रहे. मरघट से लोगों को जोड़ने के लिए अंतिम निवास पर ही फ्री में भोजन बांटना शुरू कर दिया. उनका यह फॉर्मूला भी काफी सफल रहा. इसके जरिए वो लोगों के दिमाग से अंतिम निवास को लेकर दकियानूसी सोच को मिटाना चाहते थे.  शहीद के अंतिम संस्कार के बाद अंतिम निवास को बनाया मिशन---  महेश सक्सेना ने नोएडा में अंतिम निवास को विकसित करने में बड़ी भूमिका निभाई. वह बताते हैं कि एक वक्त था जब यहाँ अव्यवस्थाओं का अंबार था. चारों तरफ झाड़ियां थी और गंदगी थी. लेकिन, कारगिल युद्ध के दौरान नोएडा के कैप्टन विजयंत थापर शहीद हुए. नोएडा लोक मंच को उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था करने का मौका मिला. उस वक्त उन्होंने पूरे शहर को उनकी अंतिम यात्रा का हिस्सा बनाया. इसके बाद उन्हें समझ आया कि अंतिम निवास की सूरत भी बदलनी होगी. तब से लेकर आज तक यहाँ पर उन्होंने काफ़ी बदलाव किए हैं. यहाँ अब सीएनजी से भी शव जलाए जाते हैं. ये व्यवस्था भी महेश सक्सेना के जरिए ही हुई है.  कोविड में शुरू किया फ्री दवा बैंक---  महेश सक्सेना ने कोविड के वक्त गरीब लोगों के लिए एक दवा बैंक की भी शुरुआत की है. इस दवा बैंक में पूरे शहर के लोगों से दवाइयां इकट्ठा की जाती हैं. फिर उन दवाइयों को गरीबों तक मुफ्त में पहुंचाया जाता है.  केमिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट--- महेश सक्सेना केमिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट हैं. उन्होंने बताया, इंदिरा सरकार के समय इंजीनियर्स के लिए ज़्यादा नौकरीयाँ नहीं थी. सरकार इंजीनियर्स को अपना बिजनेस शुरू करने के लिए प्रेरित करती थी. तभी लोन लेकर उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर फैक्ट्री शुरू की. उस वक्त उनके या उनके दोस्त के परिवार में कोई भी बिजनेस नहीं करता था.  भाई की मौत ने सब बदल दिया---  बिजनेस शुरू करने के बाद सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. मगर, एक घटना ने जीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया. महेश सक्सेना बताते हैं , छोटे भाई को कैंसर था. बहुत कोशिश के बाद भी अपने भाई को बचा नहीं सका. फिर एहसास हुआ कि अगर इतना पैसा होते हुए भी भाई की जिंदगी नहीं बचा सका, तो फिर इस पैसे का क्या मतलब. तब से उन्होंने अपना जीवन समाज की सेवा में समर्पित कर दिया।  भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई---  महेश सक्सेना बताते हैं कि लाइब्रेरी बनाने से पहले समाज सेवा में एंट्री की. सबसे पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू की. एक वक्त पर समझ आया कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के चक्कर में कहीं न कहीं गरीबों के लिए काम नहीं कर पा रहे हैं. इसके बाद अस्पताल और सरकारी स्कूल के अपने मिशन को प्राथमिकता दी. 

2022-10-06 11:09:28