हस्तलिखित ग्रन्थ परंपरा ही इतिहास व संस्कृति की रीढ़ है-डॉ. बी. डी. कल्ला
मुनि जनविजय एवं पांडुलिपियों की प्रासंगिकता पर सेमिनार संपन्न।
हस्तलिखित ग्रन्थ परंपरा ही इतिहास व संस्कृति की रीढ़ है-डॉ. बी. डी. कल्ला
बीकानेर। भारतीय संस्कृति के सच्चे रक्षक राम और कृष्ण नहीं हैं, बल्कि मह्रिषी बाल्मीकि और वेद व्यास हैं। यदि ये रामायण और महाभारत की रचना नहीं करते तो शायद आज हम राम और कृष्ण के विराट व्यक्तित्व से भी परिचित नहीं होते। मुनि जिनविजय की इन्हीं बातों को एवं उनके द्वारा खोजी, संरक्षित की गई भारतीय इतिहास, विरासत, संस्कृति की थाती पांडुलिपियों पर कला व संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार के अंतर्गत राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के कार्यक्रम के तहत होटल भंवर निवास, रामपुरिया हवेली में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में कही गई। मुनि जिनविजय ने जिस तरह अपने जीवन काल में देश के विभिन्न भागों के विद्वानों को जोड़कर हस्तलिखित ग्रंथों का संपादन और प्रकाशन करवाया है, आज उसी मिशन की पुनः आवश्यकता है। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान को पुनः पांडुलिपियों का संरक्षण और प्रकाशित करना है।
राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला ने अपने संबोधन में बताया कि पाण्डुलिपि की विषय-वस्तु सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। भारत विशाल संख्या में ज्ञान की धरोहर पांडुलिपियों का केंद्र है। डॉ कल्ला ने धार्मिक समरसता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सनातन, जैन और बौध धर्म में ओम शब्द की अत्यंत महत्ता है। मंत्री ने राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के लिए दो घोषणाएं भी की, जिसके प्रथमतः बीकानेर शाखा में डिजिटल डेस्क स्थापित किया जाएगा एवं अगले वित्तीय वर्ष में प्रतिष्ठान के शोध पत्रिका “प्रतिष्ठान” का प्रकाशन पुनः प्रारंभ किया जाएगा। सेमिनार के संयोजक डॉ. नितिन गोयल, वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी ने अपने स्वागत अभिवादन में राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के गत तीन वर्षों की उपलब्धियों एवं नवाचार के बारे में जानकारी प्रदान की।
राष्ट्रीय सेमिनार की विशिष्ट अतिथि सुश्री चंद्रकला जैन ने अपने वक्तव्य में पांडुलिपियों की बहुल्ल्यता एवं सहजने की परंपरा के आधार पर राजस्थान को एक विशिष्ट राज्य बताया। उन्हें यह भी बताया की मुनि जिनविजय के प्रयासों से ही राजस्थान में प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में एकत्र की गई पांडुलिपियों की संख्या 1,29,000 तक पहुँच पाई थी। सेमिनार शासनश्री साध्वी श्री चाँदकुमारी के पवन सानिध्य में हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में पाण्डुलिपियों के विषय में चिन्ता का नहीं चिंतन का समय है। अतः आज आवश्यकता है कि पांडुलिपियों के अध्ययन की कार्यशालाएं आयोजित की जाएं। सेमिनार के प्रथम तकनीकी सत्र में हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमरीका से जुड़े डॉ आर. ब्लाईनडरमेन ने व्याकरण की पांडुलिपियों पर प्रकाश डाला। इसी तरह जापान से जुड़े तोमोयूकी यामाहाता ने मध्यकालीन जैन साहित्य शोध के लिए पांडुलिपियों का महत्त्व एवं राजस्थान, गुजरात की भूमिका को अपने शोधपत्र के माध्यम से सिद्ध किया। उदयपुर से प्रो. माधव हाडा ने मुनि जिनविजय के व्यक्तित्व और कृतित्व पर पाण्डुलिपि संग्रहण में योगदान को ऑनलाइन माध्यम से साझा किया । गुजरात विश्वविद्यलय से बीकानेर आए प्रो. विक्रम अमरावत ने गुजराती एवं राजस्थानी भाषा में संग्रहित पांडुलिपियों एवं गुजरात विद्यापीठ की स्थापना में मुनि जिनविजय के योगदान पर प्रकाश डाला।
द्वितीय तकनीकी सत्र में डॉ. मदन सैनी ने पाण्डुलिपि के संपादन एवं पाठालोचन की प्रक्रिया द्वारा पांडुलिपियों के अध्ययन को विस्तृत रूप से समझाया । जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय से पधारी श्रमणी संगीत प्रज्ञाजी ने महा श्रमण के द्वारा रचित पाण्डुलिपि एवं इस विधा में प्रमुखता से दिए जा रहे योगदान के विभिन्न पक्षों को उजागर किया। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली से आये डॉ. सोनू सैनी ने रूस और विश्व के अन्य देशों में भारतीय पांडुलिपियों के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि पांडुलिपियाँ भारतीय संस्कृति के गौरान्वित इतिहास को उजागर के लिए सबसे सशक्त माध्यम है। इसलिए उनका भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं में अनुवाद करवाना प्राथमिकता होनी चाहिए। डॉ. सुरेन्द्र शर्मा ने पाण्डुलिपि के बारे में कहा कि पाण्डुलिपि केवल एक ग्रन्थ ही नहीं बल्कि व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन होता है, जिसे वह आगामी पीढ़ी के हाथों में देकर जाता है और हमारा दाइत्व है कि हम उसका संरक्षण करें। राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से आए डॉ. कुलवंत शेखावत ने सामाजिक इतिहास लेखन में आई अणद विलास नामक पाण्डुलिपि के माध्यम से सीरवी समाज के इतिहास का पुनर्लेखन कैसे किया जा सकता है, इस पर प्रकाश डाला।
इस सेमिनार में डॉ. डी.सी. जैन, डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा, महेंद्र जैन, डॉ. राजेन्द्र कुमार, डॉ. फारुक चौहान, डॉ. राज शेखर, डॉ. रजनी रमण झा, डॉ. चन्द्र शेखर, डॉ. सुखा राम, डॉ. सुनीता स्वामी, डॉ. शशि गोदारा, बुलाकी शर्मा, डॉ. अजय जोशी, नदीम अहमद, सितांशु ताखर, जाकिर अदीब, असद अली असद, सुरेन्द्र पुरोहित, रामेश्वर बेरवा,आशीष कुमार मिश्रा, गिरधर दान रतनु, शंकर सिंह राज पुरोहित, सुनीता बिश्नोई, नारायण चोपड़ा, विशाल सोलंकी, अमर सिंह, विशेष कोठारी, समणी जिज्ञासा प्रज्ञा, नंदिता सिंघवी, सुमन चौधरी, सुरेश स्वामी के साथ साथ लगभग सवा सौ प्रतिभागियों ने ऑफलाइन भाग लिया। इस सेमिनार में भारत के विभिन राज्यों से दो सौ से अधिक लोगों ने ऑनलाइन भाग लिया। कार्यक्रम का प्रतिष्ठान के सोशल मिडिया प्लेटफार्म पर भी लाइव टेलीकास्ट किया गया। कार्यक्रम का संचालन ऋतू शर्मा ने किया । होटल भंवर निवास के सुनील रामपुरिया द्वारा सेमिनार के आयोजन हेतु सहयोग और समर्थन प्रदान किया गया।