ना मन का रावण आज तक मरा, ना सदाचार आ पाया।





लो जी, हर साल की तरह इस बार भी रावण के पुतले को जलाकर हमने बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत हासिल कर ली। कुमार विशु के भजन की एक पंक्ति याद आ गई, "हर घर में रावण बैठा, इतने राम कहां से लाऊं।" हर साल रावण को मारते हैं, कोसते हैं। रावण तो भगवान श्री राम के हाथों हजारों-हजारों साल पहले मारा गया। लेकिन हमारे मन में बैठा रावण ना आज तक मरा, ना राम को बसा पाए। किसी ने सच ही कहा है, अपने मन में राम को बसाओ, दिल-दिमाग में बुरे, खोटे और कुत्सित विचारों वाला रावण खुद-ब-खुद मर जाएगा। जब ऐसा हो जाएगा, तब रामराज्य स्वतः ही आ जाएगा। यह कलियुग है साहब, शासन-प्रशासन और समाज में चारों ओर अनाचार, अत्याचार, व्यभिचार, छल-कपट, झूठ, चुगली, टांग खिंचाई, भ्रष्टाचार, पापाचार, हिंसा, बलात्कार, शारीरिक-मानसिक शोषण, अपने फायदे के लिए दूसरों का नुकसान, आपसी बैर-भाव, विद्वेष, जमाखोरी, मुनाफाखोरी, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, कट्टरता, गरीबों के मुंह का निवाला छीन कर खुद खा जाना, काली कमाई से पेट मोटे करना व तिजोरी भरना, यह सब कुछ तो चल रहा है। रावण के इतने ही नहीं, अनगिनत रूप हमारे चारों ओर व्याप्त हैं। "परउपदेश बहुतेरे", सारे उपदेश दूसरों के लिए होते हैं। जरा खुद भी तो अमल करके देखें। माना कि त्यौहार, पर्व,उत्सव मनाना हमारी धर्म-संस्कृति है। संस्कृति को जिंदा रखने के लिए यह बहुत जरूरी है। किंतु हर त्यौहार, पर्व, उत्सव हमें जीवन में नैतिकता-शुचिता का संदेश भी देते हैं लेकिन बुराई के पैरों तले अच्छाई दब जाती है। असत्य के नीचे सत्य दब या छिप जाता है। झूठ और छल कपट हावी हो जाता है। भगवान श्री राम के आदर्श कोई नहीं अपनाता। यदि हम इन आदर्शों को ही मानें-अपनाएं, तो ही हम कह सकते हैं कि बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत होगी।

2022-10-06 05:24:34