राजस्थानी भाषा की उज्ज्वल पहचान है, राजस्थानी का कथा साहित्य: राजेन्द्र जोशी
जोधपुर। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के राजस्थानी विभाग द्वारा ऑनलाईन फेसबुक लाइव पेज पर गुमेज व्याख्यानमाला श्रृंखला के अंतर्गत बीकानेर के राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम साहित्यकार कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने राजस्थानी भाषा के प्राचीन गद्य विधाओं के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि राजस्थानी भाषा की उज्ज्वल पहचान राजस्थानी का कथा साहित्य है। कार्यक्रम की संयोजक एवं राजस्थानी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने बताया कि यह ऑनलाईन व्याख्यानमाला देश विदेश में राजस्थानी भाषा की समृद्धता व्यक्त करते हुए सतत लोकप्रिय हो रही है और आज इस व्याख्यानमाला कि 23वीं कडी में "राजस्थानी भाषा री ऊजळी ओळख:कथा साहित्य" पर बोलते हुए राजेन्द्र जोशी ने कहा कि किसी भी भाषा की पहचान उसके साहित्य से ही होती है। यह साहित्य लिखित और मौखिक दोनों ही रूपों में लोक में मौजूद है। लोक कंठो में निवास करती लोक भाषा लोक गीतो, लोक कथाओं, लोक नाटको आदि के माध्यम से लोक साहित्य को पौषित करती है और जब हम बात करते है राजस्थानी भाषा के कथा साहित्य की तो कथाऐं, कहानियाँ , उपन्यास आदि के मूल को कथा ही कहा जाता है। कथाओं का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ ही हुआ है। राजस्थानी बात यात्रा लगभग 750 वर्षाे से निरंतर चलती आ रही है। कथा साहित्य की प्रथम शुरूवात बच्चों की लोरी और बातों से ही हुई है। यह बातें मनुष्य और पशु पक्षीयों के सह अस्तित्व से जुडी हुई है। चाहे वह पंचतंत्र की कथाऐं हो या फिर राजस्थानी की टमरक टू, काग मोती आदि जैसी बाते हो। जोशी ने राजस्थानी आलोचना की चर्चा करते हुए डाॅ.अर्जुन देव चारण के कथा साहित्य पर किये गये काम की भी विस्तार से विमर्श किया।
जोशी ने कहा कि राजस्थानी के प्रसिद्ध कथाकार विजयदान देथा ने तो राजस्थानी बातों के खजाने को" बाता री फुलवाडी" नाम से 14 भागों में प्रकाशित किया है। यह कथाऐं मनुष्य के मनोविज्ञान को सामने लाते हुए राजस्थानी भाषा की उज्ज्वल पहचान को भी अभिव्यक्ति प्रदान करती है । आपने बिज्जी के समकालीन लेखकों में डॉ. मनोहर शर्मा, राणी लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत, नानू राम संस्कृता जैसे रचनाकारों के बात साहित्य का भी विस्तार से उल्लेख किया।
जोशी जी ने अभिजात्य साहित्य के रूप में राजस्थानी कथा साहित्य के श्रीवृदन में और इसे नई पहचान, महत्वपूर्ण योगदान देने वाले साहित्यकार, शिवचंद भरतिया, रावत सारस्वत, मुरलीधर व्यास,श्री चंद्र राय, अन्नाराम सुदामा, बैजनाथ पंवार ,नृसिंह राजपुरोहित, मुलचन्द्र प्राणेश, श्रीलाल नथमल जोशी, यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र, बी.एल. माली, नंद भारद्वाज, देवकिशन राजपुरोहित, सीताराम महर्षि, किशोर कल्पनाकांत, मालचंद तिवाडी ,डाॅ. मदन सैनी, चेतन स्वामी, सांवर दइया, डाॅ.सत्यनारायण सोनी, रामेश्वर गोदारा, भरत ओला, माधव शर्मा, मधु आचार्य , श्याम जांगिड जैसे अनेकों लेखकों ने कथा साहित्य में राजस्थानी भाषा के भाव पूर्ण चित्र उकेरे है। इन कथाओं के विषय विभिन्न रहे हैं जिनमें नव जागरण के सूर, समाज सुधार की चेतना, सामाजिक बदलाव, यथार्थवादी, आदर्शवादी आदि के साथ साथ नई दिशा देने का भी काम भी किया है।
इन सभी कहानीकारों की कथाओं पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि राजस्थानी का समृद्धशाली कथा साहित्य इस बात का साक्षी है कि राजस्थानी भाषा कि उज्ज्वल पहचान समकालीन भारतीय साहित्य में गर्व पूर्ण है।आपने कहा कि राजस्थानी प्राचीन बातों और लोक कथाओं के अनुभव से आधुनिक राजस्थानी कथा साहित्य बहुत समृद्ध हुआ है। इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में देश भर से बड़ी संख्या में साहित्यकार, विद्वान और शोधार्थी, विद्यार्थी जुडे रहे। चन्द्र शेखर जोशी, श्याम जांगिड, कुंदन माली, श्याम सुन्दर भारती लक्ष्मी कांत व्यास, डॉ. नीरज दहिया, दीपा परिहार, स्वरूप सिंह परिहार, विनोद बिश्नोई, पप्सा इंडालिया, युवराज चारण, जगदीश मेघवाल, विष्णुशंकर आदि जुडे रहे।