दायित्व बोध कब जागेगा?
आम आदमी अपने दैनिक जीवन में क्या चाहता है- रोजगार, सामाजिक सुरक्षा, समान न्याय, आवास और आधारभूत सुविधाएँ जैसे सड़क, पानी, बिजली। सुगम यातायात के लिए पक्की सड़कें, घर और बाहर पर्याप्त रोशनी की सुविधा और पानी। यही तो मायने हैं विकास के आम आदमी के। लेकिन वह भी पूरी नहीं हो पा रहे हैं। पिछले 15 वर्षों का विश्लेषण करें तो पायेंगे कि नगर निगम, विधानसभा और संसद में बीकानेर की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले जन आकांक्षाओं और अपेक्षाओं पर खरे उतरने में नाकाम ही रहे हैं। शहरी क्षेत्र में अधिकांश लोग जीवनयापन के लिए स्वरोजगार के साथ-साथ सरकारी सेवा पर निर्भर रहते हैं। येनकेन प्रकरणेन रहने के लिए आवास की व्यवस्था भी कर लेते हैं लेकिन स्थानीय शासन-प्रशासन तथा सरकार द्वारा उपलब्ध करवाये जाने वाली मूलभूत सुविधाओं का क्या? पहले कार्यकाल में नहीं हुई सब्र धारण कर लिया। दूसरा कार्यकाल भी बीत गया और अब तीसरा भी रीतने को है लेकिन जनता केवल सब्र का कड़वा घुट ही पीती रही है। क्योंकि विकास तो अभी भी सत्ता के गलियारों में ही चक्कर काट रहा है, वहाँ से आजाद होने की राह ताक रहा है। चक्कर थमेगा, मुक्ति मिलेगी तभी तो मेरे और आपके गली-मोहल्ले में पहुँचेगा।
बीकानेर में वांछित विकास देखने को नहीं मिला है। बीकानेर में विकास कार्यों को गति मिल ही नहीं पा रही है। सौन्दर्यकरण के नाम पर सिर्फ छोटा-बड़ा किया जा रहा है। दूरगामी ठोस नीति के अभाव में तथा जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण बीकानेर तथा बीकानेर वासियों को उनका जायज हम कभी मिला ही नहीं जिसके वो सही अर्थों में हकदार हैं। इतना सन्तोष और धीरज धारण करना भी सही नहीं है। अधिकारों के लिए आवाज उठाओं, सोए हुए तन्त्र को जगाओ। गलत को गलत करने की आदत डालो। तन्त्र और जनप्रतिनिधि कार्य नहीं करते तो उन्हें टोकने की, चेताने की आदत डालो। बिना माँगे और बोले कुछ नहीं मिलेगा। उनकी तरफ से जन्मदिन पर मिलने वाले बधाई सन्देश को प्राप्त करके ही सन्तुष्ट होकर मत बैठ जाओ। बधाई सन्देश पत्र प्राप्त होना विकास का पैमाना नहीं है। बाहर निकलो इससे और समस्यओं के उन्मूलन और विकास के लिए नीति निर्धारण के लिए सामुहिक रूप से आवाज उठाओ, स्वयं को भी जगाओ और प्रशासन को भी जगाओ और नेताओं को चेताओ।
माना कि राष्ट्र हित सर्वोपरी है लेकिन डेढ़ दशक का समय भी तो कम नहीं होता। विकास तो सोया ही पड़ा है, जागने का नाम ही नहीं ले रहा। ‘ऐसा ही चलता है’, कि नीति को बदलना ही होगा। बीकानेर का चहुँमुखी विकास करवाना है तो नींद से जागना भी है और जगाना भी। बड़ा सवाल ”क्या हमने सपने देखना छोड़ दिया है?“ सपने देखिए, सपने पालिए, पहल करिये अपनी गली, अपने मोहल्ले, अपने वार्ड और अपने बीकाणे के विकास में भागीदार बनिए। माना कि आप सभी ने विगत कुछ चुनावों में देशहित सर्वोपरी की भावना को मन में धारण करके, राष्ट्र प्रथम की तीव्र इच्छा के कारण अपना मत दिया और आधारभूत विकास को पीछे रखा। देश तभी समृद्ध, सशक्त और विकासशील बन सकता है जब प्रत्येक भारतवासी खुशहाल हो, प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग हो, आधारभूत सुविधाओं का ढांचा पूर्ण विकसित हो क्योंकि क्षेत्र का विकास होगा तो शहर का विकास होगा, शहर विकसित होगा तो राज्य अग्रणी बनेगा, राज्य अग्रणी बनेगा तो देश भी शक्तिशाली होगा।
इतनी क्या जल्दी है, जरा ठहर भी जाओ।
सो रहा हूँ मैं, न नींद से तुम जगाओ।।
क्या सशक्त राष्ट्र निर्माण में एक तरफा त्याग ही करते रहेंगे आम नागरिक, दूसरी ओर वालों (शासनकर्ता तथा जनप्रतिनिधियों) का कोई नैतिक कर्त्तव्य नहीं है। इनमें दायित्व बोध कब जागेगा, यह समय की गर्त में छिपा है.....?
जय हिन्द! वन्देमातरम्!!
माना कि राष्ट्र हित सर्वोपरी है लेकिन डेढ़ दशक का समय भी तो कम नहीं होता। विकास तो सोया ही पड़ा है, जागने का नाम ही नहीं ले रहा। ‘ऐसा ही चलता है’, कि नीति को बदलना ही होगा। बीकानेर का चहुँमुखी विकास करवाना है तो नींद से जागना भी है और जगाना भी। बड़ा सवाल ”क्या हमने सपने देखना छोड़ दिया है?“ सपने देखिए, सपने पालिए, पहल करिये अपनी गली, अपने मोहल्ले, अपने वार्ड और अपने बीकाणे के विकास में भागीदार बनिए। माना कि आप सभी ने विगत कुछ चुनावों में देशहित सर्वोपरी की भावना को मन में धारण करके, राष्ट्र प्रथम की तीव्र इच्छा के कारण अपना मत दिया और आधारभूत विकास को पीछे रखा। देश तभी समृद्ध, सशक्त और विकासशील बन सकता है जब प्रत्येक भारतवासी खुशहाल हो, प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग हो, आधारभूत सुविधाओं का ढांचा पूर्ण विकसित हो क्योंकि क्षेत्र का विकास होगा तो शहर का विकास होगा, शहर विकसित होगा तो राज्य अग्रणी बनेगा, राज्य अग्रणी बनेगा तो देश भी शक्तिशाली होगा।
इतनी क्या जल्दी है, जरा ठहर भी जाओ।
सो रहा हूँ मैं, न नींद से तुम जगाओ।।
क्या सशक्त राष्ट्र निर्माण में एक तरफा त्याग ही करते रहेंगे आम नागरिक, दूसरी ओर वालों (शासनकर्ता तथा जनप्रतिनिधियों) का कोई नैतिक कर्त्तव्य नहीं है। इनमें दायित्व बोध कब जागेगा, यह समय की गर्त में छिपा है.....?
जय हिन्द! वन्देमातरम्!!