हे भारत! हे युवा भारत! जागो!
काल का प्रवाह निरन्तर गतिशील है, वर्ष 2022 बीत गया या यूँ कहें की रीत गया... इसमें कुछ अच्छी अनुभूतियाँ भी थीं तो कुछ दुःखद प्रसंग भी, उत्थान भी था तो पतन भी, सृजन भी था तो विसर्जन भी। लेकिन हमको आगे की ओर देखना है, पिछले अनुभवों से सीखते हुए। साथियों भारत वर्ष की आत्मा उसकी विराट प्राचीन और गौरवमयी सांस्कृतिक चेतना में है जो निरन्तर प्रवाहित होती रहती है। वेदों के सार में, गीता के ज्ञान में, ऋषि-मुनियों की तपस्या में, वीरों के बलिदान में, त्याग और समर्पण में।
त्याग-बलिदान-निःस्वार्थ कर्म की परम्परा को काल के प्रवाह के साथ कितना पुष्ट किया है या कमजोर किया है इसका मूल्यांकन करने का समय आ गया है। क्योंकि भारतवर्ष में दैवीय सम्पदा की कमी और आसुरी शक्तियों की वृद्धि के कारण वैमनस्य की बर्बरता का, क्रुरतम हिंसा की प्रवृत्ति का कोलाहल बढ़ रहा है। समाज में इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। सनातन के संवाहकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे आदर्श विषपान करने वाले शिव है तो, मर्यादा का सूत्र देने वाले श्रीराम भी हैं और जीवन जीने की कला सीखने वाले योगेश्वर श्रीकृष्ण भी हैं। इन सभी ने मानवता के कल्याण के लिए असीम दुःख भी सहे लेकिन उचित समय आने पर दुःख देने वाली आसुरी शक्तियों का समूल नाश भी किया। हम सभी को इनके जीवन चरित्र से विशेषकर वर्तमान युवा पीढ़ी को अवश्य ही प्रेरणा लेनी चाहिये। क्योंकि जीवनपथ में थोड़ी-सी कठिनाई, बाधा, परेशानी आने पर घोर अवसाद में डूब जाते हैं और असमय ही अपनी जीवन लीला को नष्ट कर रहें हैं। युवाओं का तनावग्रस्त होना, आत्महत्या जैसी कठोर कदम उठाना हमारा सामाजिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है?
युवा तनाव को साझा करें.....
प्रतिस्पर्धा की तीव्र दौड़ में आकांक्षाओं पर खरा उतरने, अव्वल आने की इच्छा और असफलता का डर, चिन्ता और तनाव का कारण बनता है। अपनी क्षमताओं को पहचाने और उसी के अनुसार कार्य करें। अपनी क्षमताओं के अतिदोहन से बचें अन्यथा अवसाद उत्पन्न होगा। तनाव से बचने के लिए अपने मन की बात को, अपनी इच्छाओं को दबायें नहीं। उन्हें माता-पिता, गुरुजनों या अपने साथियों के साथ साझा करें। ऐसा करने से तनाव कम होगा। नकारात्मक विचारों को अपने ऊपर हावी न होने दें। इससे बचने के लिए सद् साहित्य, प्रेरक कथाएँ, ध्यान, योग का उपयोग करें। जीवन अनमोल है इसे नष्ट करना पाप के समान है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- ‘कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीरपुरुष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते- यहाँ तक कि कभी वे अपने मन में भी पापचिन्ता का उदय नहीं होने देते।
कमियों का मूल्यांकन करें.....
भारत वर्ष में अनेक सन्त-महात्माओं ने समय-समय पर समाज का मार्गदर्शन किया है। युवाओं के बारे में स्वामी विवेकानन्द ने जीवन जीने के विशेष कर युवाओं को नई दिशा दिखलाई है। उन्होंने कहा हे भारत! उठो! जागो! वीर बनो! मेरे बच्चों को सबसे पहले वीर बनना चाहिए। स्वामीजी का यह विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। अपितु वर्तमान समय में तो और भी ज्यादा उचित जान पड़ता है। क्योंकि हम जीवन जीने की पद्धति को ही भूल बैठे हैं। “चिन्ता चिता है और चिन्तन मुक्ति का द्वार” दैनिक जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं के समाधान का प्रयास किये बिना चिन्ताग्रस्त रहने से समस्या टलती नहीं है, हल नहीं होती। चिन्ता पर चिन्तन करने से ही उसका समाधान निकलता है। क्योंकि मात्र चिन्ता करना हमें चिता की ओर ले जाती है यानि असफलता की ओर। असफलता से तनाव उत्पन्न होता है और तनाव से अवसाद। जिसके दुष्परिणाम समाज में दिखाई देने लगे हैं युवाओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्या के रूप में। यदि हमने चिन्ता पर चिन्तन करना आरम्भ कर दिया तो वह हमें मुक्ति का मार्ग यानि सफलता की ओर अग्रसर करेगा। यदि हमें जीवन में सफल होना है, निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना है तो अपनी क्षमताओं के पहचानते हुए, अपनी कमियों को सुधारते हुए कार्य करना है। सिर्फ दिखावा मात्र नहीं करना उसके लिए मन से शत-प्रतिशत प्रयास भी करना है तभी होगा सर्वांगीण विकास।
स्वामी विवेकानन्द कहते थे बहादुरी से लड़ते रहो। जीवन का समय अल्प है। इसका किसी महान् कार्य के लिए उत्सर्ग कर दो। उन्होंने आगे कहा कि निराश मत होओ; मार्ग बड़ा कठिन है- छूरे की धार पर चलने के समान दुर्गम; फिर भी निराश मत होओ; उठो, जागो और अपने परम आदर्श को प्राप्त करो।
हे भारत! हे युवा भारत! जागो! स्वयं का चरित्र निर्माण करते हुए राष्ट्र का निर्माण करने के लिए उद्त्त हो जाओ। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ प्रवेश करते हैं वर्ष 2023 में। जय हिन्द! वन्देमातरम्!!
विवेक मित्तल
समाजसेवी, विचारक एवं पत्रकार
बीकानेर
मो. 9414309014
त्याग-बलिदान-निःस्वार्थ कर्म की परम्परा को काल के प्रवाह के साथ कितना पुष्ट किया है या कमजोर किया है इसका मूल्यांकन करने का समय आ गया है। क्योंकि भारतवर्ष में दैवीय सम्पदा की कमी और आसुरी शक्तियों की वृद्धि के कारण वैमनस्य की बर्बरता का, क्रुरतम हिंसा की प्रवृत्ति का कोलाहल बढ़ रहा है। समाज में इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। सनातन के संवाहकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे आदर्श विषपान करने वाले शिव है तो, मर्यादा का सूत्र देने वाले श्रीराम भी हैं और जीवन जीने की कला सीखने वाले योगेश्वर श्रीकृष्ण भी हैं। इन सभी ने मानवता के कल्याण के लिए असीम दुःख भी सहे लेकिन उचित समय आने पर दुःख देने वाली आसुरी शक्तियों का समूल नाश भी किया। हम सभी को इनके जीवन चरित्र से विशेषकर वर्तमान युवा पीढ़ी को अवश्य ही प्रेरणा लेनी चाहिये। क्योंकि जीवनपथ में थोड़ी-सी कठिनाई, बाधा, परेशानी आने पर घोर अवसाद में डूब जाते हैं और असमय ही अपनी जीवन लीला को नष्ट कर रहें हैं। युवाओं का तनावग्रस्त होना, आत्महत्या जैसी कठोर कदम उठाना हमारा सामाजिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है?
युवा तनाव को साझा करें.....
प्रतिस्पर्धा की तीव्र दौड़ में आकांक्षाओं पर खरा उतरने, अव्वल आने की इच्छा और असफलता का डर, चिन्ता और तनाव का कारण बनता है। अपनी क्षमताओं को पहचाने और उसी के अनुसार कार्य करें। अपनी क्षमताओं के अतिदोहन से बचें अन्यथा अवसाद उत्पन्न होगा। तनाव से बचने के लिए अपने मन की बात को, अपनी इच्छाओं को दबायें नहीं। उन्हें माता-पिता, गुरुजनों या अपने साथियों के साथ साझा करें। ऐसा करने से तनाव कम होगा। नकारात्मक विचारों को अपने ऊपर हावी न होने दें। इससे बचने के लिए सद् साहित्य, प्रेरक कथाएँ, ध्यान, योग का उपयोग करें। जीवन अनमोल है इसे नष्ट करना पाप के समान है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- ‘कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीरपुरुष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते- यहाँ तक कि कभी वे अपने मन में भी पापचिन्ता का उदय नहीं होने देते।
कमियों का मूल्यांकन करें.....
भारत वर्ष में अनेक सन्त-महात्माओं ने समय-समय पर समाज का मार्गदर्शन किया है। युवाओं के बारे में स्वामी विवेकानन्द ने जीवन जीने के विशेष कर युवाओं को नई दिशा दिखलाई है। उन्होंने कहा हे भारत! उठो! जागो! वीर बनो! मेरे बच्चों को सबसे पहले वीर बनना चाहिए। स्वामीजी का यह विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। अपितु वर्तमान समय में तो और भी ज्यादा उचित जान पड़ता है। क्योंकि हम जीवन जीने की पद्धति को ही भूल बैठे हैं। “चिन्ता चिता है और चिन्तन मुक्ति का द्वार” दैनिक जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं के समाधान का प्रयास किये बिना चिन्ताग्रस्त रहने से समस्या टलती नहीं है, हल नहीं होती। चिन्ता पर चिन्तन करने से ही उसका समाधान निकलता है। क्योंकि मात्र चिन्ता करना हमें चिता की ओर ले जाती है यानि असफलता की ओर। असफलता से तनाव उत्पन्न होता है और तनाव से अवसाद। जिसके दुष्परिणाम समाज में दिखाई देने लगे हैं युवाओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्या के रूप में। यदि हमने चिन्ता पर चिन्तन करना आरम्भ कर दिया तो वह हमें मुक्ति का मार्ग यानि सफलता की ओर अग्रसर करेगा। यदि हमें जीवन में सफल होना है, निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना है तो अपनी क्षमताओं के पहचानते हुए, अपनी कमियों को सुधारते हुए कार्य करना है। सिर्फ दिखावा मात्र नहीं करना उसके लिए मन से शत-प्रतिशत प्रयास भी करना है तभी होगा सर्वांगीण विकास।
स्वामी विवेकानन्द कहते थे बहादुरी से लड़ते रहो। जीवन का समय अल्प है। इसका किसी महान् कार्य के लिए उत्सर्ग कर दो। उन्होंने आगे कहा कि निराश मत होओ; मार्ग बड़ा कठिन है- छूरे की धार पर चलने के समान दुर्गम; फिर भी निराश मत होओ; उठो, जागो और अपने परम आदर्श को प्राप्त करो।
हे भारत! हे युवा भारत! जागो! स्वयं का चरित्र निर्माण करते हुए राष्ट्र का निर्माण करने के लिए उद्त्त हो जाओ। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ प्रवेश करते हैं वर्ष 2023 में। जय हिन्द! वन्देमातरम्!!
समाजसेवी, विचारक एवं पत्रकार
बीकानेर
मो. 9414309014