इंदरधनख संग्रह का लोकार्पण।
बीकानेर। मदन डागा साहित्य भवन में इंदरधनख संग्रह का लोकार्पण हुआ। राजस्थानी की लेखिकाओं के इस सांझा संकलन की संपादक हैं-बसंती पंवार एवं पूर्णिमा मित्रा। कुल 33 लेखिकाओं की विविध विधाओं की रचनाएं इस संग्रह में संकलित हैं-कहानी ,लघु कथा, आलेख ,व्यंग्य स्मरण, एकांकी, सबद चितराम, रेखा चितराम आदि विधाओं में यहाँ नए नए रंग समाहित हैं। पड़ीया तोई टांग तो ऊपर है, लुगाई री उडान, बूंद बूंद से सागर, बनता रूखां री, घट्टी, प्रकृति पटोरन री साख, नारी जीवन मायलो सांच, राजस्थानी संस्कृति और साहित्य में फागण, रिस्ता नाता, संयुक्त परिवार रौ मेतव, बादली, बगत बगत रो आंतरो, खुशबू, ल्यो कर लो बात, चूड़ी री खातर आदि रचनाओं में इंद्रधनुषी शोभा के विविध रंग हैं जो राजस्थानी साहित्य की समृद्धि के द्योतक हैं। इस लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान की बाल साहित्य अकादमी के सदस्य सत्यदेव संवितेंद्र ने कहा कि राजस्थानी लेखिकाएं मौन साधक की तरह अपना कार्य करते हुए निरंतर मायड़ भाषा को समृद्ध कर रही हैं। इनकी रचनाओं में निहित अबूझ पीड़ा का सुंदर निदर्शन है। ऐसे अन्य संग्रह भी राजस्थानी भाषा में निरंतर प्रकाशित होने चाहिए। 11 वीं शताब्दी से लेकर मायड़ भाषा में निरंतर रचना कर्म संपादित हो रहा है। आज यह साहित्य पूर्ण रूप से समृद्ध है। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय की राजस्थानी विभाग की अध्यक्ष डाॅ मीनाक्षी बोराणा ने कहा कि राजस्थानी लेखिकाओं का लेखन समाज का आरसी है, जिसमें अपने युग की संवेदनाएँ, समस्याएँ, कुरीतियाँऔर यथार्थ नजर आता है। ये लेखिकाएँ केवल समस्या ही नहीं उठातीं, समाधान भी प्रस्तुत करती हैं। वे समाज में चेतना व जागृति का पथ प्रशस्त कर रही हैं। संभावना की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर कैलाश कौशल ने संग्रह की विविध विधाओं की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि ये लेखिकाएँ सकारात्मक सोच से समाज में सहज बदलाव की पक्षधर हैं। संकलन की सभी रचनाएँ मानवता के पक्ष में अपना प्रखर स्वर लिए हुए देश की मिट्टी के विविध रंगों को प्रस्तुत कर रही हैं। इन रचनाओं में देसी छवियाँ अंकित हैं। विशिष्ट अतिथि डाॅ पद्मजा शर्मा ने कहा कि यह राजस्थानी भाषा का पहला साझा संकलन है जिसमें विविध विधाओं का सम्यक समन्वय इसे इंद्रधनुषी आब देता है जिसमें कहीं लेखों में गंभीर चिंतन है। कहीं लघु कथाओं के सुन्दर संदेश हैं तो कहीं व्यंग्य का चुटीला अंदाज है, यह अप्रतिम है। प्रस्तुत संकलन की संपादक बसंती पंवार ने इस संकलन की संपूर्ण परिकल्पना पर प्रकाश डाला। पूर्णिमा मित्रा के साथ इस संकलन को मूर्त रूप देने में एक वर्ष का समय लगा। उन्होंने बताया कि इसमें जोधपुर की 18 लेखिकाओं की एवं बीकानेर ,जयपुर की अन्य रचनाकारों की महत्वपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। कथा के साथ ही कथेतर विधाओं में भी आज राजस्थानी भाषा में प्रभूत मात्रा में लिखा जा रहा है। इस संकलन की रचनाएँ इस बात का प्रमाण हैं। संकलन का प्रकाशन नवकिरण सृजन मंच के अध्यक्ष डॉ. अजय जोशी ने बताया कि इस संकलन का प्रकाशन नवकिरण प्रकाशन,बिस्सों का चौक, बीकानेर द्वारा गैर व्यवसायिक आधार पर किया गया है।
लोकार्पण समारोह का संचालन स्वाति जैसलमेरिया ने किया और आभार डाॅ वसुमती शर्मा ने दिया। सभागार में डाॅ चाँद कौर जोशी, लीला कृपलानी, श्रीमती जहूर खान मेहर, खेमकरण लालस, कैलाशदान, जितेन्द्र जालोरी, हरिप्रकाश राठी, उषा पुंगलिया, निर्मला राठौड़, रेणुका श्रीवास्तव, अर्चना बिस्सा, मोनिका वर्मा, तृप्ति गोस्वामी आदि उपस्थित थे।
बीकानेर। मदन डागा साहित्य भवन में इंदरधनख संग्रह का लोकार्पण हुआ। राजस्थानी की लेखिकाओं के इस सांझा संकलन की संपादक हैं-बसंती पंवार एवं पूर्णिमा मित्रा। कुल 33 लेखिकाओं की विविध विधाओं की रचनाएं इस संग्रह में संकलित हैं-कहानी ,लघु कथा, आलेख ,व्यंग्य स्मरण, एकांकी, सबद चितराम, रेखा चितराम आदि विधाओं में यहाँ नए नए रंग समाहित हैं। पड़ीया तोई टांग तो ऊपर है, लुगाई री उडान, बूंद बूंद से सागर, बनता रूखां री, घट्टी, प्रकृति पटोरन री साख, नारी जीवन मायलो सांच, राजस्थानी संस्कृति और साहित्य में फागण, रिस्ता नाता, संयुक्त परिवार रौ मेतव, बादली, बगत बगत रो आंतरो, खुशबू, ल्यो कर लो बात, चूड़ी री खातर आदि रचनाओं में इंद्रधनुषी शोभा के विविध रंग हैं जो राजस्थानी साहित्य की समृद्धि के द्योतक हैं। इस लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान की बाल साहित्य अकादमी के सदस्य सत्यदेव संवितेंद्र ने कहा कि राजस्थानी लेखिकाएं मौन साधक की तरह अपना कार्य करते हुए निरंतर मायड़ भाषा को समृद्ध कर रही हैं। इनकी रचनाओं में निहित अबूझ पीड़ा का सुंदर निदर्शन है। ऐसे अन्य संग्रह भी राजस्थानी भाषा में निरंतर प्रकाशित होने चाहिए। 11 वीं शताब्दी से लेकर मायड़ भाषा में निरंतर रचना कर्म संपादित हो रहा है। आज यह साहित्य पूर्ण रूप से समृद्ध है। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय की राजस्थानी विभाग की अध्यक्ष डाॅ मीनाक्षी बोराणा ने कहा कि राजस्थानी लेखिकाओं का लेखन समाज का आरसी है, जिसमें अपने युग की संवेदनाएँ, समस्याएँ, कुरीतियाँऔर यथार्थ नजर आता है। ये लेखिकाएँ केवल समस्या ही नहीं उठातीं, समाधान भी प्रस्तुत करती हैं। वे समाज में चेतना व जागृति का पथ प्रशस्त कर रही हैं। संभावना की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर कैलाश कौशल ने संग्रह की विविध विधाओं की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि ये लेखिकाएँ सकारात्मक सोच से समाज में सहज बदलाव की पक्षधर हैं। संकलन की सभी रचनाएँ मानवता के पक्ष में अपना प्रखर स्वर लिए हुए देश की मिट्टी के विविध रंगों को प्रस्तुत कर रही हैं। इन रचनाओं में देसी छवियाँ अंकित हैं। विशिष्ट अतिथि डाॅ पद्मजा शर्मा ने कहा कि यह राजस्थानी भाषा का पहला साझा संकलन है जिसमें विविध विधाओं का सम्यक समन्वय इसे इंद्रधनुषी आब देता है जिसमें कहीं लेखों में गंभीर चिंतन है। कहीं लघु कथाओं के सुन्दर संदेश हैं तो कहीं व्यंग्य का चुटीला अंदाज है, यह अप्रतिम है। प्रस्तुत संकलन की संपादक बसंती पंवार ने इस संकलन की संपूर्ण परिकल्पना पर प्रकाश डाला। पूर्णिमा मित्रा के साथ इस संकलन को मूर्त रूप देने में एक वर्ष का समय लगा। उन्होंने बताया कि इसमें जोधपुर की 18 लेखिकाओं की एवं बीकानेर ,जयपुर की अन्य रचनाकारों की महत्वपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। कथा के साथ ही कथेतर विधाओं में भी आज राजस्थानी भाषा में प्रभूत मात्रा में लिखा जा रहा है। इस संकलन की रचनाएँ इस बात का प्रमाण हैं। संकलन का प्रकाशन नवकिरण सृजन मंच के अध्यक्ष डॉ. अजय जोशी ने बताया कि इस संकलन का प्रकाशन नवकिरण प्रकाशन,बिस्सों का चौक, बीकानेर द्वारा गैर व्यवसायिक आधार पर किया गया है।
लोकार्पण समारोह का संचालन स्वाति जैसलमेरिया ने किया और आभार डाॅ वसुमती शर्मा ने दिया। सभागार में डाॅ चाँद कौर जोशी, लीला कृपलानी, श्रीमती जहूर खान मेहर, खेमकरण लालस, कैलाशदान, जितेन्द्र जालोरी, हरिप्रकाश राठी, उषा पुंगलिया, निर्मला राठौड़, रेणुका श्रीवास्तव, अर्चना बिस्सा, मोनिका वर्मा, तृप्ति गोस्वामी आदि उपस्थित थे।