*यूनानो-रोम,मिस्र में वो बात है कहाँ, जो बात ऐ ज़िया मिरे हिन्दोस्तां में है।* वतन की ज़िया से मुनव्वर हुई सुख़न की महफ़िल।
बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी की 562 वीं कड़ी में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में हिंदी-उर्दू के चुनिंदा रचनाकारों ने कलाम सुनाकर दाद लूटी।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने बस्ती पर सवाल किए-
इसको बस्ती क्यों कहते हो,
इसमें बस्ती जैसा क्या है।
मुख्य अतिथि प्रो नरसिंह बिनानी ने सर्दी के मौसम का मंज़र बयान किया-
सर्दी का मौसम है आता,
कोहरा चहुंओर है छाता।
आयोजक डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने देशभक्ति के शेर सुनाये-
*यूनानो-रोम,मिस्र में वो बात है कहाँ,
जो बात ऐ ज़िया मिरे हिन्दोस्तां में है।*
राजस्थान उर्दू अकादमी सदस्य असद अली असद ने ये कैसी सूझ बूझ मिरे बाग़बां में है, शाइर इम्दादुल्लाह बासित ने उसे बिन कहे पता है मिरे दर्द का फ़साना, डॉ जगदीशदान बारहठ ने तू चांद नहीं जो बादलों में छुप जाए और कमल किशोर पारीक ने नशीली आंखों पे उसके कुर्बान हो जाएंगे सुना कर महफ़िल में नए नए रंग भरे। संचालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया। युवा साहित्यप्रेमी ज़ुल्क़रनैन ने सभी का आभार व्यक्त किया।
इसको बस्ती क्यों कहते हो,
इसमें बस्ती जैसा क्या है।
सर्दी का मौसम है आता,
कोहरा चहुंओर है छाता।
*यूनानो-रोम,मिस्र में वो बात है कहाँ,
जो बात ऐ ज़िया मिरे हिन्दोस्तां में है।*