ज़िक्र-ए-सुख़न से अदीबों ने किया नए साल को ख़ैर मक़दम।
बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी की 561वीं कड़ी में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में हिंदी-उर्दू के रचनाकारों ने कलाम सुना कर दाद लूटी।
कवि कमल किशोर पारीक की अध्यक्षता व शिक्षाविद प्रो टी के जैन के मुख्य आतिथ्य में आयोजित गोष्ठी में वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने आंखें रदीफ़ से ग़ज़ल सुना कर वाह वाही हासिल की-
सब हक़ीक़त बयान कर देंगी,
ख़ूब रखती हैं ये हुनर आंखें।
आयोजक डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने दोस्तों पर शेर सुनाये-
इख्लास दोस्तों में, भी बाक़ी नहीं रहा,
जाते हैं वो उधर कि जिधर फाएदा है आज।
असद अली असद ने गम्भीर शेर सुनाये-
फिर आसमाँ की आंख से टपका है जो लहू,
शायद ज़मीं पे ज़ुल्म हुआ फ़िर किसी के साथ।
शाइर वली मुहम्मद गौरी वली नए साल पर नज़्म सुनाई-
आज महकी हुई लग रही है फ़ज़ा,
है मुअ़त्तर - मुअ़त्तर जहां की हवा,
मरहबा मरहबा साल आया नया।
इम्दादुल्लाह बासित ने उम्र बीत जाती है आशियाँ बनाने में, युवा शाइर मुहम्मद मुईन ने ये बहारे-बागे-दुनिया चार दिन, प्रो नरसिंह बिनानी ने मंगलमय अंग्रेज़ी 2023 नववर्ष व डॉ जगदीश दान बारहठ ने सीख ले सच पर चलना अटल ज़िन्दगी सुना कर कार्यक्रम की शोभा बढाई।