रेगिस्तान में ईको टूरिज़्म का आधार है ऊँट।
स्वच्छता अभियान को लेकर एनआरसीसी द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित
बीकानेर। भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर (एन.आर.सी.सी.) द्वारा स्वच्छ भारत पखवाड़ा (16 से 31 दिसम्बर 2022) संबंधी गतिविधियों को उजागर करने के उद्देश्य से आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। इस दौरान ऊँट की ऊन से निर्मित विभिन्न उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।
प्रेस वार्ता के दौरान केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि स्वच्छता का हम सभी के जीवन में विशेष महत्व है तथा परिवेश की शुद्धता से एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा स्वच्छता अभियान के तहत साफ-सफाई संबंधी निर्धारित गतिविधियाँ तथा ऊँटों में स्वच्छता प्रबंधन आदि को पूरी गंभीरता से निष्पादित किया जाता है, इसके पीछे मूल कारण भारत सरकार के निर्देशों के साथ-साथ इस संस्थान का पर्यटन स्थल के रूप में विश्व विख्यात होना भी है। उन्होंने खुषी जाहिर करते हुए बताया कि इस उष्ट्र संस्थान को देखने वालों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ रही है जो कि इस पशु के इको-टूरिज्म में महत्व को भी स्पष्टतः उजागर करता है।
डॉ. साहू ने केन्द्र द्वारा ऊँट की ऊन से निर्मित विभिन्न उत्पादों, ऊँट के बालों के महत्व एवं इसकी विशेषताओं पर खास प्रकाश डालते हुए कहा कि ऊँट पालक, इसके बालों को अनुपयोगी न समझें या सीधे तौर पर इन्हें प्रयुक्त न करें बल्कि इनके गुणवत्तापूर्ण उत्पाद तैयार कर अतिरिक्त लाभ कमाएं। डॉ. साहू ने ऊँट का पर्यावरणीय महत्व बताते हुए कहा कि ऊँट अपनी विशालकाय देह के कारण आमजन के लिए कौतूहल का विषय है, अतः इस आधार पर उष्ट्र-पर्यटन जब ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ेगा तो यह सीधे तौर पर ऊँट पालकों को लाभ पहुंचाएगा। इसके दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्म एवं दुग्ध व्यवसाय में संभावनाएं, इसके बाल, चमड़ी, हड्डी आदि से पनप रहे कुटीर उद्योग आदि की दृष्टि से इसकी बहुआयामी उपयोगिता इस प्रजाति की प्रासंगिकता को सिद्ध करते हैं।
इस दौरान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ऊँटों की बढ़ती व भारत में घटती संख्या, परम्परागत उपयोगिता में आ रही कमी, सीमित होते चरागाह, इसके रखरखाव, राजकीय पशु हेतु कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने एवं उष्ट्र व्यापार में बढ़ोत्तरी लाने हेतु दूसरे राज्यों में इस पशु को ले जाने की नीति में बदलाव/शिथिलता बरतने आदि विभिन्न मुद्दों पर भी बातचीत हुई।
इस अवसर पर केन्द्र के नोडल अधिकारी (स्वच्छता) डॉ. आर.के.सावल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। श्री अखिल ठुकराल, प्रशासनिक अधिकारी ने केन्द्र में पखवाड़े में आयोजित स्वच्छता गतिविधियों को प्रस्तुत करते हुए बताया कि अभियान तहत विविध स्थलों की साफ-सफाई, प्रतियोगिता, अपशिष्ट प्रबंधन आदि विभिन्न गतिविधियां संचालित की गई।
इस अवसर पर एन.आर.सी.सी. द्वारा ऊँट की ऊन से निर्मित विभिन्न उत्पादों यथा-कम्बल, दरी, कोटी/जैकेट, कम्पोजिट, उष्ट्र बालों से प्राप्त केराटिन पाउडर, गुलदस्ता, उष्ट्र ऊन व इनके निर्मित धागे आदि उत्पादों के महत्व को प्रदर्शित करने हेतु एक प्रदर्शनी भी लगाई गई।
प्रेस वार्ता के दौरान केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि स्वच्छता का हम सभी के जीवन में विशेष महत्व है तथा परिवेश की शुद्धता से एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा स्वच्छता अभियान के तहत साफ-सफाई संबंधी निर्धारित गतिविधियाँ तथा ऊँटों में स्वच्छता प्रबंधन आदि को पूरी गंभीरता से निष्पादित किया जाता है, इसके पीछे मूल कारण भारत सरकार के निर्देशों के साथ-साथ इस संस्थान का पर्यटन स्थल के रूप में विश्व विख्यात होना भी है। उन्होंने खुषी जाहिर करते हुए बताया कि इस उष्ट्र संस्थान को देखने वालों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ रही है जो कि इस पशु के इको-टूरिज्म में महत्व को भी स्पष्टतः उजागर करता है।
डॉ. साहू ने केन्द्र द्वारा ऊँट की ऊन से निर्मित विभिन्न उत्पादों, ऊँट के बालों के महत्व एवं इसकी विशेषताओं पर खास प्रकाश डालते हुए कहा कि ऊँट पालक, इसके बालों को अनुपयोगी न समझें या सीधे तौर पर इन्हें प्रयुक्त न करें बल्कि इनके गुणवत्तापूर्ण उत्पाद तैयार कर अतिरिक्त लाभ कमाएं। डॉ. साहू ने ऊँट का पर्यावरणीय महत्व बताते हुए कहा कि ऊँट अपनी विशालकाय देह के कारण आमजन के लिए कौतूहल का विषय है, अतः इस आधार पर उष्ट्र-पर्यटन जब ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ेगा तो यह सीधे तौर पर ऊँट पालकों को लाभ पहुंचाएगा। इसके दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्म एवं दुग्ध व्यवसाय में संभावनाएं, इसके बाल, चमड़ी, हड्डी आदि से पनप रहे कुटीर उद्योग आदि की दृष्टि से इसकी बहुआयामी उपयोगिता इस प्रजाति की प्रासंगिकता को सिद्ध करते हैं।
इस दौरान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ऊँटों की बढ़ती व भारत में घटती संख्या, परम्परागत उपयोगिता में आ रही कमी, सीमित होते चरागाह, इसके रखरखाव, राजकीय पशु हेतु कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने एवं उष्ट्र व्यापार में बढ़ोत्तरी लाने हेतु दूसरे राज्यों में इस पशु को ले जाने की नीति में बदलाव/शिथिलता बरतने आदि विभिन्न मुद्दों पर भी बातचीत हुई।
इस अवसर पर केन्द्र के नोडल अधिकारी (स्वच्छता) डॉ. आर.के.सावल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। श्री अखिल ठुकराल, प्रशासनिक अधिकारी ने केन्द्र में पखवाड़े में आयोजित स्वच्छता गतिविधियों को प्रस्तुत करते हुए बताया कि अभियान तहत विविध स्थलों की साफ-सफाई, प्रतियोगिता, अपशिष्ट प्रबंधन आदि विभिन्न गतिविधियां संचालित की गई।
इस अवसर पर एन.आर.सी.सी. द्वारा ऊँट की ऊन से निर्मित विभिन्न उत्पादों यथा-कम्बल, दरी, कोटी/जैकेट, कम्पोजिट, उष्ट्र बालों से प्राप्त केराटिन पाउडर, गुलदस्ता, उष्ट्र ऊन व इनके निर्मित धागे आदि उत्पादों के महत्व को प्रदर्शित करने हेतु एक प्रदर्शनी भी लगाई गई।