क्यों ना बंद कर दी जाएं भर्ती परीक्षाएं?



 

जो भी भर्ती परीक्षा होती है, उसका पेपर आउट क्यों हो जाता है?
आखिर क्यों होता है ऐसा, कहीं इसके पीछे कोई खेल है?

भर्ती परीक्षाएं बंद क्यों नहीं कर दी जाएं। जो भी भर्ती परीक्षा होती है, उसका पेपर आउट क्यों हो जाता है? आखिर क्यों होता है ऐसा? कहीं इसके पीछे कोई खेल है? यह ऐसे सवाल हैं, जो भर्ती और परीक्षा एजेंसियों के साथ-साथ सरकार से जवाब मांगते हैं। इन सवालों के अभी नहीं, तो कभी-ना-कभी जवाब देने ही पड़ेंगे। सरकार जी, आप फॉर्म की चार सौ की जगह दुगुनी फीस ले लीजिए। लेकिन भर्ती परीक्षाएं कराना बंद कर दीजिए। क्यों उन युवा बेरोजगारों की भावनाओं से खेल रहे हो। माना कि फॉर्म की फीस से सरकार को मोटी कमाई मिलती है। आप यह कमाई कीजिए, कोई गुरेज नहीं है। जरा सोचिए, युवा बेरोजगार कितनी मेहनत से तैयारी करते हैं, मौसम की मार सहते और सफर की तकलीफ पाते हुए परीक्षा देने के लिए सेंटर तक पहुंचते हैं। या तो परीक्षा देने के बाद या परीक्षा होने से पहले पेपर आउट होने के कारण निरस्त कर दिया जाता है। इन बेरोजगारों के दिलों पर क्या बीतती होगी। क्यों न, परीक्षा को बंद कर शैक्षिक और प्रशैक्षणिक योग्यता के आधार पर मेरिट बनाकर भर्ती करने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। इससे परीक्षा कराने पर होने वाले तमाम खर्च बचेंगे, एजेंसियों की मशक्कत नहीं होगी। तमाम साधन-संसाधन, प्रशासन और पुलिस मशीनरी भी नहीं झोंकनी पड़ेगी। हां, गड़बड़ी की गुंजाइश तो हर प्रक्रिया या काम में होती है। ऐसे में इस प्रक्रिया को पूरा करने का जिम्मा ऐसी एजेंसी को दिया जा सकता है, जो राजस्थान से बाहर की हो। या फिर राजस्थान की ही ऐसी एजेंसी को काम दिया जाए, जिसके बारे में आवेदकों को भनक तक नहीं लगे। भर्ती परीक्षाओं और प्रक्रियाओं में गड़बड़ी की आशंका, गुंजाइश, संभावना को देखते हुए निष्पक्ष चयन की उम्मीद कम ही रह जाती है। राज्य में कोचिंग माफिया येन, केन, प्रकारेन अपने स्वार्थ के लिए कुछ-ना-कुछ जुगत लगाते रहते हैं। आए दिन भर्ती प्रक्रिया में होने वाली गड़बड़ी को देखते हुए कई बार लगता है कि पढ़ाई का कोई मतलब नहीं रह गया है। आरएएस और अन्य भर्तियों की बात तो छोड़िए, जब चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भर्ती के लिए परीक्षा होती है तो बात कोई मायने नहीं रखती है कि किसी बच्चे के दसवीं-बारहवीं में कितने परसेंट मार्क्स आए। थर्ड डिवीजन और सप्लीमेंट्री से पास होने वाले भी भर्ती की परीक्षा देते हैं तो फर्स्ट डिवीजन से पास होने वाले भी। जब सभी को एक ही घाट पर पानी पीना है तो फिर परसेंटेज और रैंक या डिवीजन क्या मायने रखते हैं। शिक्षक नेता विजय सोनी ने बहुत ही तर्कपूर्ण बात कही है। उनकी बात में दम नजर आता है। वे कहते हैं, प्रतियोगी परीक्षाएं बंद कर दी जाएं। इससे कोचिंग माफिया भी बंद हो जाएगा और पेपर आउट कराने वाले गिरोह भी खत्म हो जाएंगे। अनावश्यक करोड़ों रूपए सरकार के खर्च नहीं होंगे। सोनी कहते हैं, फिर क्या किया जाए इसकी जगह। सिर्फ और सिर्फ पहले की तरह शैक्षिक और प्रशैक्षिक योग्यता की मेरिट बनाकर उसके आधार पर नियुक्तियां प्रदान कर दी जाएं। इससे बच्चे स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई में मन लगाएंगे और अनुशासित तरीके से पढ़ाई करेंगे। वर्तमान में स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई नगण्य हो गई है। स्कूल में डमी कैंडिडेट बन कर बच्चे कोचिंग संस्थानों में पढ़ते रहते हैं, स्कूल और कॉलेज की तरफ ध्यान नहीं देते। इससे बच्चे अच्छे नागरिक भी नहीं बन पा रहे हैं। बात कड़वी जरूर है लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए हर किसी के मन में यह बातें उठना और प्रकिया पर सवाल उठाना स्वाभाविक है। वैसे द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा का पेपर आउट होने पर राजस्थान लोक सेवा आयोग ने कड़ा कदम उठाते हुए पेपर आउट करने वाले 47 लोगों को हमेशा के लिए डिबार कर दिया है। यह लोग केवल राजस्थान लोक सेवा आयोग की ही नहीं, अब भविष्य में देशभर में होने वाली किसी भी भर्ती परीक्षा में शामिल नहीं हो सकेंगे। यानी यह लोग सभी भर्ती परीक्षाओं के लिए ब्लैकलिस्ट हो गए हैं। इसी तरह पुलिस महकमे ने इन लोगों की संपत्ति कुर्क करने का जो निर्णय किया है, वह भी क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।

प्रेम आनन्दकर, अजमेर।

लेखक देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं। 


2022-12-26 22:35:36