भेदभाव नहीं अब,मिल भारत कहें सब
प्रकाश जैन-प्रसिद्ध विचारक, चिंतक एवम सर्व धर्म समन्वयक
एक महान सत्य यह है कि-एकता और शक्ति ही जीवन है, तथा भेदभाव जनित दुर्बलता ही समाज या किसी राष्ट्र की मृत्यु है। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि पारस्परिक विश्वास, प्रेम, भाईचारे और शांति के युग में देश ने असीम तरक्की की है। लेकिन भेदभाव,घृणा, द्वेष की परिस्थिति में सामाजिक और राष्ट्रीय विघटन देखने को मिला है। पिछले लगभग 30 वर्षों में हमारे देश ने तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में बेहतरीन उन्नति की है, लेकिन इस तरक्की के साथ धीरे-धीरे हमारे समाज में नैतिक मूल्यों का पतन और देश के प्रति प्रेम में भी कमी देखने को मिलती है। हम जाति, धर्म, प्रांत, भाषा आदि के कई झगड़ों में सोशल मीडिया पर एक्टिव हो गए हैं तथा इस प्रकार के संदेशों को गहनता से पढ़ रहे हैं जो सामाजिक व राष्ट्रीय विघटन के लिए उत्तरदाई हैं। इससे सामाजिक प्रेम व राष्ट्रीय समरसता का ताना-बाना कमजोर पड़ने लगा है। अतः हमारे देश में भाईचारे और अमन को बढ़ाने के लिए हमें अपनी सोच और व्यवहार में परिवर्तन करना होगा। जिससे हमारे देश में भावात्मक और नैतिक तौर पर मजबूती दिखाई देगी और वही मजबूती हमें वास्तव में तरक्की योग्य बनाएगी। विभिन्न असामाजिक तत्वों द्वारा हमारे मध्य जहर घोलने के लिए भेदभाव की खाई खोदी जा रही है। हमें उसे मिटाने के लिए कुछ छोटे -छोटे कदम उठाने होंगे। हमें यह मानसिक रूप से शपथ लेनी होगी कि हमारी धार्मिक, सामाजिक,सांस्कृतिक पहचान चाहे कुछ भी हो उन सबसे पहले हमारी पहचान एक भारतीय के रूप में होनी चाहिए।
हमारे लिए परिवार और समाज से पहले हमारा देश भारत है और हम इस देश के लिए हैं यह विचार निरंतर हमारे मस्तिष्क में जीवित रहना चाहिए ।इसके लिए हमें कुछ छोटे-छोटे व्यवहारों को आज से ही अपनाना होगा तथा दूसरों को भी उस प्रकार का व्यवहार करने के लिए प्रेरित करना होगा-
1-हम आपस में एक दूसरे से संबोधन में जातिगत या धार्मिक संबोधन के शब्द काम में ना लें जहां तक कोशिश हो गुड मॉर्निंग और गुड इवनिंग जैसे शब्दों के स्थान पर भी हम जय भारत और जय हिंद जैसे शब्द काम में लें।
2-सोशल मीडिया पर हम धार्मिक या जातिगत भावनाओं को आहत करने वाले संदेशों को पढ़ने और फॉरवर्ड करने में अपना अनावश्यक समय नष्ट ना करें इस प्रकार के कार्यों से बचें।
3-हमारे घरों पर तथा हमारे सामाजिक और धार्मिक भवनों पर अलग-अलग रंगों के झंडे फहराने की अपेक्षा हम केवल हमारे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को ही फहराने की प्रतिज्ञा लें।
4-समाज के सभी वर्गों में होने वाले धार्मिक आयोजनों में हम सभी परस्पर मिलजुल कर अपनी सद्भावना प्रदर्शित करते हुए उस कार्यक्रम का हिस्सा बने।
5-सामाजिक प्रेम और शांति को नुकसान पहुंचाने वाला कोई भी तत्व यदि हमें पता लगता है तो संबंधित प्रशासन एवं पुलिस को इसके बारे में तुरंत सूचना दें।
6-आने वाली पीढ़ी को हम हमारे देश के महान सपूतों देशभक्तों एवं क्रांतिकारियों के समर्पण एवं त्याग के किस्से और कहानियां सुनावे।
7-चाहे किसी भी धर्म या जाति का कोई भी व्यक्ति ऐसा अपराध करता है जो सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाता है या राष्ट्र हित में नहीं है हमें उसका विरोध करना चाहिए केवल वह तत्व हमारी जाति या धर्म का है तो उसका समर्थन नहीं करना चाहिए।
8-ऐसे टेलीविजन चैनल्स के डिबेट कार्यक्रम नहीं देखने चाहिए जिनका उद्देश्य केवल टीआरपी बढ़ाना एवं सामाजिक प्रेम और भाईचारे में जहर घोलना है।
9-सभी धर्म के लोगों को महीने में एक बार किसी ना किसी स्कूल में सामूहिक रूप से जाकर वहां धार्मिक और सामाजिक एकता का संदेश विद्यार्थियों को प्रार्थना सभा में देना चाहिए।
10-जितना महत्व हम अपने धार्मिक त्योहारों को देते हैं उतना ही महत्व हम राष्ट्रीय त्योहारों को भी देना प्रारंभ करें एवं उसी धूमधाम से हमारे घरों और मोहल्लों में हम स्वतंत्रता दिवस गणतंत्र दिवस, महात्मा गांधी की जयंती आदि पर्व मनाए।
यदि हम इन सूत्रों को समाज में धीरे-धीरे अपनाने लगे तो यह 10 सूत्र निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ी के मन मस्तिष्क में यह विचार भर देंगे कि-भेदभाव नहीं अब-अब भारत कहे सब।
नोट-प्रस्तुत आलेख में लेखक के अपने विचार हैं। सभी सहमत हो आवश्यक नहीं है।
हमारे लिए परिवार और समाज से पहले हमारा देश भारत है और हम इस देश के लिए हैं यह विचार निरंतर हमारे मस्तिष्क में जीवित रहना चाहिए ।इसके लिए हमें कुछ छोटे-छोटे व्यवहारों को आज से ही अपनाना होगा तथा दूसरों को भी उस प्रकार का व्यवहार करने के लिए प्रेरित करना होगा-
1-हम आपस में एक दूसरे से संबोधन में जातिगत या धार्मिक संबोधन के शब्द काम में ना लें जहां तक कोशिश हो गुड मॉर्निंग और गुड इवनिंग जैसे शब्दों के स्थान पर भी हम जय भारत और जय हिंद जैसे शब्द काम में लें।
2-सोशल मीडिया पर हम धार्मिक या जातिगत भावनाओं को आहत करने वाले संदेशों को पढ़ने और फॉरवर्ड करने में अपना अनावश्यक समय नष्ट ना करें इस प्रकार के कार्यों से बचें।
3-हमारे घरों पर तथा हमारे सामाजिक और धार्मिक भवनों पर अलग-अलग रंगों के झंडे फहराने की अपेक्षा हम केवल हमारे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को ही फहराने की प्रतिज्ञा लें।
4-समाज के सभी वर्गों में होने वाले धार्मिक आयोजनों में हम सभी परस्पर मिलजुल कर अपनी सद्भावना प्रदर्शित करते हुए उस कार्यक्रम का हिस्सा बने।
5-सामाजिक प्रेम और शांति को नुकसान पहुंचाने वाला कोई भी तत्व यदि हमें पता लगता है तो संबंधित प्रशासन एवं पुलिस को इसके बारे में तुरंत सूचना दें।
6-आने वाली पीढ़ी को हम हमारे देश के महान सपूतों देशभक्तों एवं क्रांतिकारियों के समर्पण एवं त्याग के किस्से और कहानियां सुनावे।
7-चाहे किसी भी धर्म या जाति का कोई भी व्यक्ति ऐसा अपराध करता है जो सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाता है या राष्ट्र हित में नहीं है हमें उसका विरोध करना चाहिए केवल वह तत्व हमारी जाति या धर्म का है तो उसका समर्थन नहीं करना चाहिए।
8-ऐसे टेलीविजन चैनल्स के डिबेट कार्यक्रम नहीं देखने चाहिए जिनका उद्देश्य केवल टीआरपी बढ़ाना एवं सामाजिक प्रेम और भाईचारे में जहर घोलना है।
9-सभी धर्म के लोगों को महीने में एक बार किसी ना किसी स्कूल में सामूहिक रूप से जाकर वहां धार्मिक और सामाजिक एकता का संदेश विद्यार्थियों को प्रार्थना सभा में देना चाहिए।
10-जितना महत्व हम अपने धार्मिक त्योहारों को देते हैं उतना ही महत्व हम राष्ट्रीय त्योहारों को भी देना प्रारंभ करें एवं उसी धूमधाम से हमारे घरों और मोहल्लों में हम स्वतंत्रता दिवस गणतंत्र दिवस, महात्मा गांधी की जयंती आदि पर्व मनाए।
यदि हम इन सूत्रों को समाज में धीरे-धीरे अपनाने लगे तो यह 10 सूत्र निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ी के मन मस्तिष्क में यह विचार भर देंगे कि-भेदभाव नहीं अब-अब भारत कहे सब।
नोट-प्रस्तुत आलेख में लेखक के अपने विचार हैं। सभी सहमत हो आवश्यक नहीं है।