गर्दभ संवर्धन व गैर-गौवंशीय पशु दूध के महत्व पर गहन चिंतन।



बीकानेर। भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा आज दिनांक को इन्टरनेशनल लाइवस्‍टॉक रिसर्च इन्स्टीट्युट (इलरी) के संयुक्त तत्वावधान में एक स्टेक होल्डर मीट का आयोजन किया गया। इम्प्रूवमेंट ऑफ डन्की एण्ड नॉन-बावाइन मिल्क (डन्की संवर्धन एवं गैर-गौवंषीय पशु दूध) विषयक इस स्टेकहोल्डर बैठक के आयोजन में परिषद के कई अन्य संस्थान यथा-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, राष्ट्रीय अष्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार तथा राजुवास, बीकानेर, तथा दी डन्की सेंच्युरी भी सहभागी बने। हाईब्रीड मोड में आयोजित इस बैठक में देशभर के 100 से अधिक वैज्ञानिकों, अनुसंधान कत्र्ताओं, गैर सरकारी संगठनों, महिला एवं पुरुष पशुपालकों ने सहभागिता निभाई।

इस महत्वपूर्ण बैठक के उद्घाटन समारोह में डॉ. एच.रहमान, रिजनल रिप्रजेंटेटीव (दक्षिण एषिया), इलरी ने कहा कि दुनिया के विभिन्न देशों में पशुपालकों के लिए डन्की एक जीवन रेखा के रूप में जाना जाता है, अधिकांशतः इसे बोझा ढोने हेतु ही प्रयुक्त किया जाता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर इसकी संख्या में  बढ़ोत्तरी हुई है परंतु भारत में पिछले तीन दषक में इसकी आबादी में लगभग 90 प्रतिषत कमी आई है, राजस्थान, गुजरात राज्यों में ऊँट की संख्या भी खासा कम हुई है। डॉ. रहमान ने बैठक के उद्देश्‍य पर बात करते हुए कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में डन्की संवर्धन पर विचार-विमर्ष एवं नीति निर्धारण हेतु स्टेक होल्डर बैठकें आयोजित की जा रही है ताकि एक गहन चिंतन-मनन के पश्चात् डन्की संवर्धन एवं गैर-गौवंषीय पशुओं की आबादी बढ़ने के साथ इनके दुग्ध संवर्धन द्वारा संबद्ध समुदायों की आजीविका में सुधार लाया जा सके।

इस अवसर पर प्रो.एवं कर्नल ए.के.गहलोत, सदस्य, राज्यपाल-सलाहकार बोर्ड, राजस्थान ने कहा कि वैकल्पिक तौर पर अन्य पशु प्रजातियों जैसे-गधे, ऊँट, बकरी, भेड का भी एक अलग महत्व है तथा कोविड/डेंगू के दौर में आमजन के समक्ष इनका महत्व भी स्पष्टतः प्रदर्शित  हुआ। प्रो.गहलोत ने इन पशुओं से जुड़े पालकों की सीमित संख्या को ध्यान में रखते हुए कहा कि प्रजातियों के दुग्ध व्यवसाय हेतु इनके संग्रहण, विपणन एवं उपभोक्ताओं तक आपूर्ति हेतु विशेष प्रबन्धन की महत्ती आवश्‍यकता  है।

इस दौरान प्रो.एस.के.गर्ग, कुलपति, राजुवास,बीकानेर ने कहा कि भारत में मुख्य रूप से गाय व भैंस को दूध की दृष्टि से पाला जा रहा है तो शेष पशुधन (भेड़, बकरी, गधा, ऊँट, मिथुन आदि) के दूध के औषधीय महत्व के आधार पर तथा स्थानीय उपभोक्ताओं की आवष्यताओं की पूर्ति हेतु इन पशुओं का भी प्रचलन बढ़ाया जाना जाना चाहिए ताकि इससे पशुपालकों को सीधा लाभ मिल सके।

इस अवसर पर एनआरसीसी के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि ऊँट, गधा, बकरी, भेड़  बहु आयामी उपयोग हेतु पाले जाते हैं। इनका समेकित पशुपालन में अपना एक विशेष महत्व है। डॉ. साहू ने ऊँटनी के दूध का विभिन्न मानवीय रोगों जैसे-मधुमेह, क्षय व ऑटिज्‍म रोगों में कारगरता व दूध में विद्यमान विषेषताओं को सदन के समक्ष रखा तथा इन सभी गैर-गौवंषीय पशुओं के दूध के प्रति जागरूकता बढ़ाने व इन्हें दूध व्यवसाय के रूप में अपनाने की बात कही। इस दौरान डॉ. साहू ने ऊँटनी के दूध के महत्व पर भी बात करते हुए केन्द्र द्वारा दूध के क्षेत्र में प्राप्त अनुसंधान उपलब्धियों एवं जमीनी स्तर पर किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी गई। उन्होंने खासकर डन्की व ऊँट आदि पालने वाले समुदाय की आर्थिक स्थिति, पशुओं की घटती संख्या आदि में अपेक्षित बदलाव हेतु धरातल पर समग्र प्रयत्न किए जाने की बात कही। उन्होंने पशुपालकों की समस्याओं के निराकरण हेतु सरकारी प्रावधान, चरागाह उपलब्धता, स्वास्थ्य देखभाल आदि विभिन्न मुद्दों पर भी अपने विचार रखे।

बैठक में डॉ. टी.के.भट्टाचार्य, निदेशक, एनआरसीई, हिसार ने दूध को मानव उपभोग हेतु सर्वाेत्तम खाद्य बताते हुए कहा कि दुधारू पशु प्रोटीन व वसा प्राप्ति के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि गैर गौवंषीय पशुओं के दूध के औषधीय गुणों तथा संबद्ध स्वास्थ्य पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए।

दिनभर चले इस स्टेकहोल्डर मीट के तकनीकी सत्रों में डॉ. थानमल व डॉ.रमेश, कन्सल्टेंट, इलरी, डॉ. अनुराधा भारद्वाज, आईसीएआर-एनआरसीई, डॉ.राघवेन्द्र सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, सीएसडब्ल्युआरआई,  डॉ.ए.साहू, निदेशक,एनआरसीसी,  डॉ..मनोज मिश्रा, निदेषक, लाइवलीहुड, सहजीवन ने अपने-2 व्याख्यान प्रस्तुत किए। निष्कर्षीय उद्बोधन में डॉ. एच.रहमान ने गधे के संवर्धन एवं गैर गौवंषीय पशुओं के दूध संबंधी इस बैठक में विषय-विशेषज्ञों के साथ किए गए गहन चिंतन को सार्थक बताया तथा प्राप्त सुझावों के आधार पर एक अनुशंसात्मक प्रतिवेदन तैयार करने करने की बात कही।

इस अवसर पर सेवाराम देवासी, प्रगतिशील पशुपालक, सिरोही ने भी ऊँटनी के दूध उत्पादन पर अपने विचार रखे। धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.राम अवतार लेघा, प्रधान वैज्ञानिक, आईसीएआर-एनआरसीई ने दिया। डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक ने कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की तथा संचालन डॉ.श्याम सुन्दर चैधरी, वैज्ञानिक एनआरसीसी द्वारा किया गया।


2022-12-13 21:39:36