अशआर के ज़रिये सुख़नवरों ने दी दिल पर दस्तक।



बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी की 558 वीं कड़ी में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में हिन्दी-उर्दू के रचनाकारों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाएँ सुनाकर समां बांधा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए युवा रचनाकार संजय आचार्य वरुण ने मरुधर हेरिटेज के कार्यक्रमों की सराहना करते हुए कहा कि इन कार्यक्रमों से साहित्य को बढ़ावा मिलता है।इस अवसर पर उन्होंने ग़ज़ल सुना कर दाद लूटी-
     आजकल जी नहीं रहा कोई,
     जो भी किस्से हैं सब पुराने हैं। 
      इश्क़ तो सरहदों पे होता है,
     और जो भी हैं सब बहाने हैं। 

   आयोजक संस्था के डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने अपने शेर में बहादुरशाह ज़फ़र को याद किया-
        दिल भी दिल्ली का धड़कता तो धड़कता कैसे,
           उसने देखी ही नहीं शाहे-ज़फ़र की सूरत। 

असद अली असद ने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से झूठ को बेनकाब किया-
   बोलने को तो उसने बोल दिया,
   ये हुआ,फिर न उससे संभला झूट। 
 
शाइर वली मुहम्मद ग़ौरी वली रज़वी ने अपने शेरों में खरी खरी बातें कहीं-
   आज के दौर में देखी जो अदब की हालत,
   इक सुखनवर ने वली अपना क़लम तोड़ दिया। 
 
क़ासिम बीकानेरी ने ताज़ा ग़ज़ल सुना कर वाह वाही हासिल की-
   चाहे ज़रूरतों का गला घोंटना पड़े,
   कमज़र्फ आदमी से ना एहसान लीजिये। 
 
गीतकार धर्मेंद्र राठौड़ ने तरन्नुम के साथ गीत सुनाया-
    मुसाफिर अकेला तू,लम्बा सफर है,
    इस घर के आगे भी और एक घर है। 

बुज़ुर्ग साहित्यप्रेमी डॉ वली मुहम्मद ने आभार व्यक्त किया। संचालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।

2022-12-11 22:39:52