क्या मुस्लिम महापंचायत का शोर समुद्र के ज्वार भाटे के जैसा ही था?



क्या मुस्लिम महापंचायत का शोर समुद्र के ज्वार भाटे के जैसा ही था?

ख़्वाब देखना गुनाह नहीं है। लेकिन आम अवाम को बड़े बडे़ ख़्वाब दिखाना, फिर एक झटके से तोड़ देना, बेशक एक बहुत बड़ा गुनाह है। 

एक छोटी सी महापंचायत तो हो जानी चाहिए थी। 

दिल्ली में महिला पहलवानों ने भाजपा के कद्दावर नेता बृज किशोर सिंह के विरोध में जंतर मंतर पर अनशन पर बैठेए लाखों लोगों का समर्थन भी मिला। आरोप था कि महिला पहलवानों का यौन शौषण हुआ है। एक नाबालिग लड़की ने भी आरोप लगाया जिससे पोक्सो कानून की धारा भी लग गई। बलात्कार का मुक़दमा बन गया। महिला पहलवानों के आन्दोलन को किस राजनीति से कमज़ोर किया गया। सबने देखा है। 

बहुत अच्छा आगाज़ था बीकानेर जिले के मुस्लिम समाज को एक करने और राजनैतिक ताकत दिखाने और बढ़ाने का। सन 2018 में बीकानेर जिले की सातों सीटों में रहने वाले दो.ढाई लाख मुस्लिम वोटर्स ने एक मात्र कांग्रेस पार्टी के नेताओं को वोट दिया था। साढ़े चार साल से ज्यादा समय बीत चुका है। 14 जनवरीए2024 को वक्त भी समाप्त हो रहा है। 

बीकानेर जिले से कांग्रेस के तीन नेता विधायक बने और तीनों ही राजस्थान सरकार में मंत्री बन गए। इन तीनों नेताओं और जिले के मुस्लिम समाज को एक आंकलन तो करना ही चाहिए कि जिनके वोटों की वजह से वे विधायक बने और फिर सरकार में मंत्री बने। उन्होंने और उनके परिवार के सदस्यों ने एक राजा की तरह जीवन बिताया। बदले में इस समाज को क्या मिलाघ् अब जब छह महीने बाद ही फिर से  चुनाव होने वाला है। वोट के लिए इस कांग्रेस के वोट बैंक के पास भी जाना है तो यह आंकलन तो करना ही चाहिएए हालांकि यह तमाम तो बिलकुल आईने के समान सबको स्पष्ट दिखाई दे ही रहा है। 

क्या मुस्लिम समाज को सियासत की कोई सूझबूझ नहीं है? पिछले चार सालों से मुस्लिम समाज बीकानेर शहर में यूआईटी चैयरमैन बनाने की सरकार से फ़रियाद करता रहा था। मुसलमान शहर या देहात कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का सपना भी देखने लगा था। राजस्थान मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष का भी क्लेम कर रहा था।  कुछ महीने पहले नाराज़ हो कर कांग्रेस के मुख्यमंत्री के प्रोग्राम का बहिष्कार भी कर दिया था। शहर के मुस्लिम हलकों में महापंचायत की एक गूंज सुनाई देती थी। मौहल्लों में रमजान की रातों में सभाएं आयोजित की गई। नए नेताओं ने अपने ओजस्वी भाषण भी दिए। महापंचायत के लिए रेलवे मैदान देखा गया। नादान मुसलमान कहने लगा कि यह मैदान तो छोटा पड़ जाएगा। ऐतिहासिक भीड़ जमा हो जायेगी। आशंका हो गई कि कोई जलजला आ सकता है। चाय के प्याले में तूफ़ान। 

हसनैन पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी वकील अनवर साहब को चन्द अति उत्साही युवाओं द्वारा सोशल मीडिया में ख़ूब खरी खोटी  बातें लिखी गई। कुसूर था कि उन्होंने कह दिया कि हसनैन ट्रस्ट को राजनीति का अड्डा नहीं बनाना चाहिए। कुछ युवा लोगों ने मुस्लिम समाज के वरिष्ठ लोगों को समाज में लगे दीमक तक की उपाधि देकर ट्रॉल  कर दिया। अब सुनने में आ रहा है कि यह महापंचायत कभी आगे बुलाई जायेगी। कुछ नेताओं ने कहा कि हमारी मांगें मान ली गई है। 

क्या अब ऑल इज वेल है?

क्या मुस्लिम समाज की सब मांगे मान ली गई हैं? यदि नेताओं ने मुस्लिम समाज को कोई राजनैतिक इनामात दे दिए हैं तो उसकी जानकारी तो समाज को भी दे देनी चाहिए ना। क्या अब महापंचायत बुलाने की कोई जरुरत नहीं है। 

आज़ादी के बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीकानेर शहर से कांग्रेस ने दो दफा अहमद बक्स सिन्धी को टिकट दी। लेकिन वे हार गए। सन 1971.72 में मोहम्मद हुसैन कोहरी ने घोड़े के निशान पर चुनाव लडा। सन 1977 में जनता पार्टी से ऐडवोकेट महबूब अली विधायक बने। 

शहर के चुनगारों के मोहल्ले में रहने वाले एक एडवोकेट मोहम्मद उस्मान आरिफ राज्यसभा के सांसद बना दिए गए। जिन्हें पहले केन्द्र में मंत्री बनाया गया और फिर उत्तर प्रदेश के गर्वनर बना दिए गए। दूसरी तरफ बीकानेर शहर के अहमद बक्स सिन्धी जोधपुर से चुनाव जीत गए और सन1985 में राजस्थान सरकार में मंत्री बन गए। 

बीकानेर शहर के मुस्लिम नेता देश के होम मिनिस्टर मुफ्ती मोहम्मद सईदए गुलाम नबी आज़ादए तारिक अनवरए सलमान खुर्शीदए मौलाना ओबेदुल्ला आज़मी की मीटिंग्स करवाया करते थे।प्रधान मंत्री वी पी सिंह से मुलाकात करने की बात किया करते थे। सन 1998 में जीप के निशान पर गुलाम मुस्तफा उर्फ बाबू भाई ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। लूणकरणसर से पीर अमीन शाह ने भी चुनाव लड़ा। सन 2008 में परिसीमन हुआ।  बीकानेर शहर के दो टुकड़े कर दिए गए और खाजूवाला क्षेत्र में जहां सबसे अधिक मुसलमान थेए उसे रिज़र्व कर दिया गया। कहते हैं कि मुस्लिम समाज का राजनैतिक आपरेशन कर दिया गया। मुस्लिम समाज में जो दबंग छवि के लोग थेए उनको चुन चुन कर कमज़ोर कर दिया गया और उनके समानांतर तेल लगाने में माहिर चाटुकारों की एक बहुत बड़ी फौज खड़ी कर दी गई। जिनका काम सुबह से रात तक इन नेताओं के कसीदे पढ़ते रहने का ही हो गया है। हालत यह हो गई कि  हमारे ही समाज की इस भीड़ ने मुस्लिम महा पंचायत के जूनून को कमज़ोर कर दिया। इन नए जोशीले युवा पीढ़ी के कार्यकर्ताओ को डीमोरालाइज करने का प्रयास किया। महापंचायत एडजोर्न हो गई। 

 

अब सुनते हैं कि क्या सत्ता पर काबिज़ नेताओं ने तमाम मांगें मान ली गई हैघ् बीकानेर जिले के चन्द मुसलमान इन नेताओं के जन्मदिन पर कोटगेट पर स्थित एक दरगाह में चद्दर चढ़ाते हैं और उनके दीर्घायु की दुआ मांगते हुए फोटो खिंचवाने का काम करते है।  इन नेताओं का यह मानना है कि इसी को राजनीति कहते हैं। रीढ़ की हड्डी विहीन ये मुस्लिम रहनुमा लोकल नेताओं को टूकर.टूकर देखते हुए आसानी से सर्किट हाउस या  मीटिंगों में जनता की भीड़ में देखने को मिल जाते हैं। 

क्या महिला पहलवानों के आन्दोलन की ही तरह मुस्लिम महापंचायत के अभियान की हवा निकाल दी गई है? विचार तो ज़रूर करना चाहिए। 

 

सैयद महमूद

वरिष्ठ पत्रकार मोबाइल नम्बर.9414369652 

नोट-उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं। सभी का इनसे सहमत होना ज़रूरी नहीं है। ग्लोबल न्यूज़ किसी भी विवाद के लिए ज़िम्मेदार नहीं होगा.

 


2023-06-13 21:33:15